Prachin Bharat Ka Samajik Evam Aarthik Itihas [PB] / प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास [पेपर बैक]
Author
: Sharad Singh
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: History, Art & Culture
Publication Year
: 2008
ISBN
: 9788171245932
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xii + 337 Pages + 7 Plates + 4 Maps, Biblio, Append, Size : 22.5 X 14.5 Cm.

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प्राचीन भारत की संस्कृति का निरन्तर प्रवाह एवं सार्वभौम दृष्टि तथा आॢथक समृद्धि सदैव ही वैश्विक जिज्ञासा का विषय रही है। प्राचीन भारत में समाज की अवधारणा, समाज एवं परिवार का स्वरूप, आश्रम व्यवस्था-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की अवधारणा, वर्ण एवं जाति व्यवस्था, दास प्रथा, स्त्रियों की स्थिति, स्त्रियों के अधिकार, पर्दा प्रथा, शूद्रों की स्थिति व अस्पृश्यता, संस्कार, शिक्षा पद्धति, नैतिकता आदि का ज्ञान वर्तमान में जीवन के मूल्यों को स्थापित करने में आधारभूत स्रोत की भूमिका निभाता है। फलस्वरूप आज का व्यक्ति बार-बार अतीत के पन्ने पलटता है। अतीत की इसी अध्ययन-यात्रा में डॉ० शरद ङ्क्षसह की यह पुस्तक प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आॢथक इतिहास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी है। पुस्तक की लेखिका डॉ० शरद ङ्क्षसह एक विदुषी इतिहासकार एवं साहित्यकार हैं। इतिहास एवं साहित्य विषयक इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रस्तुत पुस्तक में लेखिका ने विषयवस्तु को इतनी सहज एवं बोधगम्य भाषा-शैली में पिरोया है कि यह पुस्तक निश्चित रूप से प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के विद्याॢथयों, शोधाॢथयों के साथ अन्य पाठकों को भी रुचिकर लगेगी। - प्रो० मारुतिनन्दनप्रसाद तिवारी पूर्व विभागाध्यक्ष, कला-इतिहास विभाग, कला संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी डॉ० (सुश्री) शरद ङ्क्षसह द्वारा लिखित 'प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आॢथक इतिहासÓ उपयोगी पुस्ïतक है। इसके प्रथम खण्ïड में सामाजिक दशा का दिग्ïदर्शन कराया गया है, जिसके अन्ïतर्गत तत्ïकालीन वर्ण-व्ïयवस्था, जाति-प्रथा के साथ-साथ परिवार की संरचना का भी वर्णन है। विविध संस्ïकार और उनकी सामाजिक उपयोगिता के अतिरिक्त लेखिका ने मनुष्ïय के कत्र्तव्ïयों का भी बोध कराया है। आहार-विहार के साथ ही जीवन में कला की सार्थकता तथा उसके स्ïवरूप पर भी प्रकाश डाला गया है। पुस्ïतक में भारतीय समाज के दोषों यथा—जाति-प्रथा, ऊँच-नीच की भावना और अस्ïपृश्ïयता आदि का भी वर्णन करना लेखिका नहीं भूली हैं। पुस्ïतक का दूसरा खण्ïड आॢथक जीवन से स?ïबन्धित है। कृषि, भारत में जीवन-यापन का प्रमुख साधन रहा है जिससे स?ïबन्धित क्षेत्र (खेत), उनका स्ïवामित्ïव, कृषि-कार्य तथा स्ïपादों का सटीक वर्णन पुस्ïतक में प्राप्ïत होता है। उद्योग-धन्ïधों की उपादेयता तथा उनके प्रकार, श्रेणी और नियमों, विनिमय के साधन, वाणिज्ïय, वणिक और पण्ïय पर भी भली-भाँति प्रकाश डाला गया है। पुस्ïतक में भारत और दक्षिणी पूर्वी एशिया तथा पश्ïिचमी देशों के साथ व्ïयापारिक और सांस्ïकृतिक स?ïबन्धों का भी रोचक विवरण दिया गया है। डॉ० शरद ङ्क्षसह ने दो परिशिष्ïटों में उपभोक्ता संरक्षण तथा वैदिक जल संरक्षण चेतना का वर्णन करके पुस्ïतक को और अधिक सार्थक तथा सामयिक बना दिया है। मेरा विश्ïवास है कि समग्र रूप में पुस्ïतक छात्रों और अध्ïयापकों तथा सामान्ïय सुधी पाठकों के लिये रुचिकर और हितकर होगी। —प्रो० (डॉ०) अँगने लाल पूर्व कुलपति, डॉ० राममनोहर लोहिया अवध विश्ïवविद्यालय, फैजाबाद एवं प्रोफेसर, प्रा०भा० इतिहास और पुरातत्ïव (सेवानिवृत्त) लखनऊ विश्ïवविद्यालय, लखनऊ