Hindi Kahani Mein Loktantra / हिन्दी कहानी में लोकतन्त्र
Author
: Sanjay Gautam
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2010
ISBN
: 9788171246366
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: iv + 188 Pages, Biblio, Size : Demy i.e. 22.5 X 14

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शासन प्रणाली के रूप में लोकतंत्र मानव सभ्यता का अब तक का सर्वोत्तम स्वप्न है। सभ्यता की विकास यात्रा में बीसवीं शताब्दी हलचल भरी रही है। तानाशाही राजशाही से लेकर साम्यवाद एवं समाजवाद जैसी अनेक प्रणालियों का अवसान इसी शताब्दी में हुआ लेकिन अनेक किन्तु परन्तु के बावजूद लोकतंत्र के प्रति आकर्षण अभी भी बना हुआ है तो शायद इसीलिए कि यह प्रणाली स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व का आश्वासन देती है, अब यह अलग बात है कि यह आश्वासन पूरा होता है या नहीं। सही मायने में देखें तो इस पुस्तक के मूल में यही है। पुस्तक के लेखक संजय गौतम ने माना है कि लोकतंत्र के मूल्य स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व प्रकारांतर से साहित्य के बुनियादी मूल्य हैं। ये वही मूल्य हैं जिसका स्वप्न आदिमकाल से हर रचनाकार देखता रहा है आदि कवि बाल्मीकि से लेकर अब तक। साहित्य समाज का यह बुनियादी स्वप्न हिन्दी कहानी में किस तरह रूपांतरित हुआ है, बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण विधा कहानी में इस स्वप्न के टूटने की ध्वनि किस तरह गूँजती है, लोकतंत्र एक प्रणाली के रूप में कैसा विद्रूप चेहरा धारण करता है, इस पुस्तक में इन सवालों का तरतीबवार विश्लेषण है। लोकतंत्र और लोकतांत्रिक चेतना का विश्लेषण करते हुए लेखक केवल पश्चिम के प्रचलित लोकतंत्र की ओर नहीं देखता अपितु भारतीय पर?परा में जनतांत्रिक चेतना की खोज करता है और यह बताता है कि भारतीय गणतंत्रों से आज तक भारतीय स?यता में जनतंत्र की चेतना प्रवाहित है। वह यह भी बताता है कि लोकतंत्र की भारतीय परम्परा अधिक मूल्य संपृक्त एवं समरस समाज बनाने में कारगर है लेकिन आधुनिक समाज ने उसे भुला दिया है। आधुनिक समाज-व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन के लिए कैसे यह परम्परा मूल्यवान साबित हो सकती है इसका उत्तर देने का सार्थक एवं सबल प्रयास इस पुस्तक में किया गया है। हिन्दी कहानी में लोकतंत्र के अभिव्यक्त स्वरूप की तलाश करते हुए लेखक हिन्दी की प्रथम कहानी तक जाता है और टोकरी भर मिट्टी (माधवराव सप्रे) की कहानी में भी व्यक्त लोकतांत्रिक चेतना का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसके बाद तो कहानी का हर काल वह इसी उद्देश्य से खंगालता है और लोकतंत्र के हर ज्वलंत प्रश्न से टकराते हुए समकालीन कहानी तक की यात्रा करता है जब कहानी और समाज दोनों ही भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, पारिवारिक तनाव, अवसाद जैसी चुनौतियों से दो चार हो रहे हैं। पुस्तक को पढऩे के बाद लोकतंत्र के सच्चे अर्थ का तो विस्तार होता ही है, जीवन के प्रति भी हमारी समझ गहरी होती है। सामाजिक जीवन में और व्यक्तिगत जीवन में कैसे हम लोकतांत्रिक मूल्यों को आत्मसात कर सुन्दर समाज का सृजन कर सकते हैं, यह प्रश्न कहीं न कहीं इस किताब के मूल में है। इसीलिए यह पुस्तक कहानी के विश्लेषण के साथ-साथ हमारे जीवन का भी विश्लेषण करने वाली किताब बन गई है। अपने आप में अनूठी इस पुस्तक को पढऩा एक रोचक विश्लेषणात्मक आख्यान से गुजरना है। यह पुस्तक शोधार्थियों विद्वानों के साथ-साथ अपने समाज, लोकतंत्र और जीवन मूल्यों को समझने के प्रयास में लगे हर स्वप्नजीवी को भी आमंत्रित करती है।