Sanskrit Ka Arvachin Samikshatmak Kavyashastra / संस्कृत का अर्वाचीन समीक्षात्मक काव्यशास्त्र
Author
: Abhiraj Rajendra Mishra
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Sanskrit Literature
Publication Year
: 2010
ISBN
: 9788171247370
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 468 Pages, Index, Size : Demy i.e. 22 x 14 C

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संस्कृत काव्यशास्त्र के क्षेत्र में श्रद्धेय पी०वी० काणे, एस०के० डे, गणेश त्र्य?बक देशपाण्डे एवं पं० बलदेव उपाध्याय की कृतियाँ प्रसिद्धि के शिखर पर रही हैं। वर्तमान शताब्दी में ?ाी, आचार्य चण्डिकाप्रसाद शुक्ल, आचार्य रेवाप्रसाद द्विवेदी एवं प्रो० राधावल्लभ त्रिपाठीजी ने काव्यशास्त्रीय विषयों का, नई दृष्टि से उन्मीलन किया है। इन प्राचीन एवं नूतन सर्जनाओं के होते हुए ?ाी पाठकों को प्रस्तुत ग्रन्थ में अनेक नये विवेच्य विषय एवं चिन्तन मिलेंगे। 'संस्कृत का अर्वाचीन समीक्षात्मक काव्यशास्त्रÓ शीर्षक प्रस्तुत ग्रन्थ इदम् प्रथमतया संस्कृत काव्यशास्त्र की वेदमूलकता का विस्तृत, प्रामाणिक विवेचन कर रहा है। इसमें पूर्व-भरतयुगीन, भरतयुगीन तथा भरतोत्तरयुगीन संस्कृत काव्यशास्त्र की जो विकास-यात्रा निरूपित की गई है उसमें प्रभूत नयापन है। विशेषत: भरतोत्तरयुगीन काव्यशास्त्र के ही अवान्तर खण्ड—पण्डित राजोत्तर संस्कृत काव्यशास्त्र में 18वीं, 19वीं, 20वीं तथा 21वीं शती ई० के काव्यशास्त्रियों के व्यक्तित्व-कर्तृत्व का विवेचन स?भवत: प्रथम बार किया गया है। 'संस्कृत काव्यशास्त्र का विवेच्य विषयÓ शीर्षक परिच्छेद में ?ाी काव्यशास्त्रीय चिन्तन का विस्तार, राजशेखर एवं क्षेमेन्द्र को विशेष रूप से रेखांकित करते हुए, जिस प्रकार उपन्यस्त किया गया है वह ?ाी लीक से हट कर है। ग्रन्थ के अन्तिम दो परिच्छेदों में अर्वाचीन शब्द की सार्थकता प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। निॢमत्युन्मेष में जहाँ महाकाव्य, खण्डकाव्य, च?पू, कथा, आ?यायिका, नाटक-नाटिका आदि प्राचीन काव्य विधाओं के लक्षणों को परिमाॢजत, संशोधित, पुन:प्रस्तुत एवं परिवॢतत किया गया है, ताकि वे वर्तमान युग के अनुकूल बन सकें, वहीं उपन्यास, कथानिका, लघुकथा, दीर्घकथा, संस्मरण, रेखाचित्रादि नई गद्य-पद्य विधाओं को परिभाषित एवं उदाहृद किया गया है। अन्तिम अध्याय में गीत, गजल (गलज्जलिका) एवं छन्दोमुक्त काव्य की सोदाहरण समीक्षा की गई है—लक्षण एवं उदाहरण के माध्यम से।