Parlok Tattva / परलोक तत्त्व
Author
: Bhargava Shivramkinkar Yogtrayanand
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Sociology, Religion & Philosophy
Publication Year
: 2011
ISBN
: 9788171247837
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xxiv +404 Pages; Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

MRP ₹ 400

Discount 20%

Offer Price ₹ 320

OUT OF STOCK

परलोक तत्त्व
जो बंग-साहित्य के इतिहास से परिचित हैं उन्होंने 'आर्यशास्त्र प्रदीप' का नाम अवश्य सुना होगा। भारतवर्ष के लिए नितान्त दुर्भाग्य का विषय है कि ऐसा प्रदीप प्रज्ज्वलित होकर इस देश में स्थायित्व-लाभ नहीं कर सका। वह दीप प्रतिकूल वायु की ताडऩा से निर्वाण प्राप्त कर गया। यदि देश में वास्तविक ज्ञान- पिपासा रहती, तब ऐसा अमूल्य ग्रन्थ रत्नखण्ड की तरह यत्न तथा आदर के साथ यहाँ के प्रत्येक घर में स्थान-लाभ करता। जिज्ञासु के निकट ही ज्ञान की महिमा प्रकाशित होती है। जिनको ज्ञानलिप्सा नहीं है, वे स्वभावत: ज्ञान तथा ज्ञानप्रद साधन का समादर नहीं कर सकते। आर्यशास्त्र प्रदीप के उपरान्त महान् विद्वान् लेखक ने मानवतत्व, भूत तथा शक्ति, आयुष्तत्व प्रभृति कई अपूर्व ग्रन्थ प्रकाशित किये। श्रीभगवान् की प्रेरणा से जगत् के दु:ख से व्यथित होकर उन्होंने लेखनी धारणपूर्वक 'परलोक तत्व' का प्रणयन किया था। दु:ख का विषय है कि उनके एक भी ग्रन्थ आज सहजलभ्य नहीं हैं। जो वस्तुत: ज्ञानलिप्सु मुमुक्षु हैं, जो शास्त्र-विश्वासी हैं तथा ऋषिवाक्य में श्रद्धावान् हैं, वे इस ग्रन्थ से अत्यन्त प्रीतिलाभ करेंगे। विशेषत: इस ग्रन्थ में निगूढ़ अध्यात्म तत्व की समालोचना है। शास्त्र वाक्य के आपात प्रतीयमान विरोध का सामंजस्य है, साधना का भी रहस्य वर्णित है। एक प्रकार से इसमें संसारपीडि़त विक्षिप्त मति जीवों के स्थिर कल्याण-लाभ का उपाय विवृत है। ऐसे वक्ता दुर्लभ हैं। पूज्यपाद ग्रन्थकार के समान प्राच्य तथा पाश्चात्य विद्या में समभावेन निष्णात, बहुश्रुत तथा भूयोविद्य एवं अनुभूतियुक्त महापुरुष के ज्ञान तथा धर्मतत्व विषयक साक्षात् उपदेश अति दुर्लभ हैं। इसीलिए उनकी लेखनी प्रसूत ग्रन्थ परलोक तत्व के तीन खण्ड को प्राप्त करके आनन्द-लाभ कर रहा हूँ। यद्यपि यह ग्रन्थ पूर्ण नहीं है, बहुत खोज के पश्चात् भी इसके चतुर्थ खण्ड का संधान नहीं मिला, किन्तु इन तीन खण्डों में ही गागर में सागर की उक्ति चरितार्थ प्रतीत हो रही है। आशा करता हूँ कि वर्तमान हिन्दू समाज इस ग्रन्थ से प्रभूत उपकृत होगा।