Vedarthparijat (Vol.1) / वेदार्थपारिजात (भाग-1)
Author
: Karpatri Ji Maharaj
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Ved, Puran, Smriti, Upnishad etc.
Publication Year
: 2016
ISBN
: 9AGVH
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xxxviii + 908 Pages; Size : Royal Octavo i.e. 28 x

MRP ₹ 695

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वेदार्थपारिजात:
खण्ड 1
प्रणेतार:
अनन्तश्रीस्वामिकरपात्रमहाराजा:
हिन्दी भाषानुवादक:
पं. व्रजवल्लभद्विवेदी दर्शनाचार्य:

सम्पादकमण्डलम्
ब्रह्मश्री पं. पट्टाभिरामशास्त्री विद्यासागर:
पं. मार्केण्डेय ब्रह्मचारी
मीमांसाचार्य पं. गजाननशास्त्री मुसलगांवकर:

VEDARTHA-PARIJATA
Vol. 1

By
Anantasri Karapatra Swami

Hindi Translation by
Pt. Vraj Vallabh Dwivedi
Darsancharya

Editorial Board
Brahmasri Pt. Pattabhi Rama Shastri, Vidyasagar
Pt. Markandeya Brahmachari

वेदार्थ के जिज्ञासुओं तथा तत्त्वचिन्तक अनुसन्धाताओं हेतु 'वेदार्थपारिजात' नामक वेदाभाष्य के प्रणेता अनन्तश्रीविभूषित सर्वतन्त्रस्वतन्त्र सनातनधर्मसमुज्जीवक प्रात:स्मरणीय पुण्यश्लोक श्री स्वामी करपात्री जी महाराज हैं। वेदभाष्यभूमिका का यह प्रथम भाग है। इस विशाल ग्रन्थ में 'मानाघीना मेयसिद्धि:' (प्रमेय की सिद्धि प्रमाण के अधीन होती है) इस वचन के अनुसार विभिन्न दार्शनिक मतवादों का सहारा लेकर सर्वप्रथम प्रमाणों को विशेष रूप से परीक्षा की गई है। इस प्रसंग में बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की भी परीक्षा की गई है। शब्द प्रमाण के विषय में आस्तिक और नास्तिक दर्शनों में बड़ा विवाद है। इसका भी निष्पक्षपात विवेचन किया गया है। प्रमाणों की प्रामाणिकता पर दार्शनिकों का परस्पर बड़ा विवाद है। प्रामाण्यवाद के नाम में यह जाना जाता है। इस पर भी ग्रन्थ में बहुत विचार किया गया है। इसी प्रसंग में वेदों के स्वरूप, उनकी अपौरूषेयता और प्रामाणिकता पर भी विस्तार से चर्चा की गयी है। साथ ही वेदस्वरूप सम्बन्धी स्वामी दयानन्द के मत की समालोचना भी की गई है।
इस ग्रन्थ का अध्ययन बहुत सावधानी से किया जाना चाहिये। वेदशास्त्र पर की गई सभी प्रकार की शंकाओं का समाधान यहाँ किया गया है। यह ग्रन्थ अनुसन्धाताओं के लिये बड़ा उपयोगी होगा, ऐसा हमारा विश्वास है।