Sarveshwar Ka Sahitya / सर्वेश्वर का साहित्य
Author
: Shraddhanand
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2014 - 1st Edition
ISBN
: 9789351460534
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: viii + 180 Pages; Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

MRP ₹ 350

Discount 20%

Offer Price ₹ 280

नयी कविता के दौर में सर्वेश्वरदयाल सक्सेना एक विशिष्ट पहचान रखते हैं। उन्होंने कविता के फलक को निरन्तर अपनी नवीन अनुभव-चेतना से समृद्ध किया। उनकी रचनाधॢमता समकालीन समय-सन्दर्भों से पूरी गहराई के साथ जुड़ी हुई है। वे अपनी कविताओं को 'तनावÓ की उपज मानते हैं। यही 'तनावÓ उन्हें 'लीकÓ तोडऩे के लिए विवश करता है। वे कविन्धर्म, मर्म को सहलाने में नहीं बल्कि उसे कुरेदने में पूर्ण मानते हैं। उनकी कविताएँ सामाजिक, राजनैतिक, आॢथक एवं सांस्कृतिक विसंगतियों, विषमताओं एवं जटिलताओं के तीक्ष्ण यथार्थ को भाषा के आभिजात्य को तोड़ते हुए बोलचाल की भाषा में व्यंग्यात्मक धार के साथ निरन्तर संभावनाओं की तलाश करती हुई लोक मन के विश्वास को सँजोती हैं। यही कारण है कि उनकी कविताओं में हाथ की नरमी-गरमी है तो कसती मु_िïयाँ भी। लोकचेतना के कवि की कविताओं में एक ओर गीत की लय और थाप है तो वहीं दूसरी ओर मूल्य-संरक्षा की प्रतिबद्धता का ओजस्वी नाद! सर्वेश्वर ने कविता को नयी ताकत ही नहीं दी बल्कि गद्य की प्राय: सभी विधाओं को अपनी रचनाधॢमता से समृद्ध किया। उनकी साहित्यिक यात्रा कथा साहित्य से शुरू हुई। कथा साहित्य में उनकी काव्य-दृष्टि की यथार्थपरकता, संवेदन-शीलता, रागात्मक स?बन्धों की तलाश, मूल्यगत क्षरण की चिन्ता अभिव्यक्त हुई है, नूतन शिल्प विन्यास के साथ। उनके नाटक भारतीय परिवेश की उपज हैं जो उनकी प्रयोगशील अभिव्यक्ति की शक्ति को और भी विस्तार देते हैं। व्यंग्यात्मकता, लोक-संपृक्ति और लोकनाट्य शैली का अद्भुत समन्वय उनके नाट्य साहित्य में है। निबन्ध, यात्रावृतान्त, संस्मरण, आलोचना और आलोचना साहित्य भी विशेष महत्त्व रखते हैं। सर्वेश्वर का गद्य साहित्य कविता से अलग नहीं, संपूरक है। कविता की भाँति गद्य साहित्य में भी किसी प्रकार का बंधन नहीं स्वीकारते, बँधते हैं तो सिर्फ मुक्ति की कामना से। प्रतिबद्धता है तो सब कुछ साफ-साफ और असरदार ढंग से कहने की। सर्वेश्वर के स?पूर्ण साहित्य पर पैनी दृष्टि रखने वाले समीक्षक की यह पुस्तक निश्चित तौर से साहित्य-अध्येताओं को नयी सोच प्रदान करेगी।