Mrichchhakatikam Ka Bhav-Soundarya / मृच्छकटिकम् का भाव-सौन्दर्य
Author
: Vedprakash Upadhyay
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Sanskrit Literature
Publication Year
: 2017, 1st Edition
ISBN
: 9788189498948
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 196 = 208 Pages

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<div>'मृच्छकटिकम्' नाट्य-कृति में जहाँ एक ओर शूद्रक की विलक्षण नाट्य-प्रतिभा का निदर्शन हुआ है, वहीं तत्कालीन जगत्-व्यवहार का भी मुग्धकारी रूप प्रस्तुत किया गया है। सोने की गाड़ी और मिट्टी की गाड़ी सत्य इसका केन्द्रीय भाव है। सम्पन्नता एवं विपन्नता का द्वन्द्व इस नाट्य-कृति का मनोहारी पक्ष है। गणिका वसन्तसेना की कुलवधू के रूप में प्रतिष्ठा इसकी फलश्रुति है। छल-छद्म पर सत्य की विजय इसका लेखकीय लक्ष्य है। यथार्थ और आदर्श का संगम इस कृति का वैशिष्ट्य है। तत्समय के परिवेश को उद्घाटित करके आदर्श की स्थापना कृतिकार का अभीष्ट है। भाषा-शैली, कथ्य एवं लालित्यपूर्ण प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से यह कृति देववाणी की अनुपम निधि है। शूद्रक के समय का समाज इस कृति में साकार हो उठा है। सामाजिक जीवन के कठोरतम सत्य के निरूपण में भावनाओं का संवेग कल्पना के साथ प्रस्रवित हुआ है। इसमें केवल आकाशीय कल्पनाओं का अतिरेक ही नहीं है, प्रत्युत् सामाजिक सत्य का निष्पक्ष निरूपण भी है। यह कृति मात्र आकुल मनोवेग की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि तत्कालीन सामाजिक कुरीतियों की प्रस्तुति है। प्रासंगिकता के धरातल पर शूद्रक की यह कृति आज भी कालजयी बनी हुई है। भविष्य में भी बनी रहेगी।</div><div><br></div><div>आचार्य शूद्रक-कृत यह 'मृच्छकटिकम्'&nbsp; निश्चित रूप से 'अभिज्ञानशाकुलन्तलम्' एवं 'उत्तररामचरितम्' की श्रेणी में स्थापित होने वाली नाट्य कृति है। इसे प्रकरण की संज्ञा देकर इसकी मूल्यवत्ता को अनदेखा किया गया है। सत्य यह है कि एक श्रेष्ठ नाट्य-कृति के समस्त औदात्य इस कृति में समाहित हैं। इसमें जय-पराजय, उत्कर्ष-अपकर्ष, सम्पन्नता-विपन्नता, अनुराग-विराग का सुन्दर संयोग है। कथ्य, भाषा एवं शिल्प का सौष्ठव ही इस कृति का वैशिष्ट्य है।<br></div>