Hindu Samaj : Sanghatan Aur Vighatan / हिन्दू समाज : संघटन और विघटन
Author
: Purushottam Ganesh Sahasrabuddhey
  Murlidhar Ba Shaha
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Sociology, Religion & Philosophy
Publication Year
: 1987
ISBN
: 9VPHSSAVH
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xvi + 268 Pages, Size : Crown i.e. 19 x 12.5 Cm.

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डॉ० सहस्रबुद्धे की सुप्रसिद्ध पुस्तक का मराठी से हिन्दी में अनुवाद एक बहुत बड़ी सांप्रतिक आवश्यकता की पूॢत करता है। भारतीय जीवन और समाज के ऐतिहासिक सन्दर्भों को खुले मस्तिष्क से जानने की आज नितान्त आवश्यकता है। हिन्दी समाज : संगठन और विघटन पुस्तक में अत्यन्त सुलझी और निष्पक्ष विचारधारा द्वारा हिन्दू समाज के संघटनात्मक तत्त्वों की व्या?या की गयी है। मूल मराठी पुस्तक की भाँति हिन्दी के माध्यम से भी डॉ सहस्रबुद्धे के विचार उन अनेक प्रश्नों एवं समस्याओं के अध्ययन में व्यापक रूप से सहायक होंगे जो आज के भारतीय जनमानस में चर्चा और महत्त्व के विषय हैं। देश के भौगोलिक विस्ताररूपी पटल पर जिस एकसूत्रमयी संस्कृति का निर्माण इतिहास के चितेरे ने किया है उसका सांगोपांग अध्ययन इस पुस्तक का विषय है। उसकी शाब्दिक परिभाषाओं में आज कुछ मतभेद दिखाई देता है। किन्तु तथ्य स्पष्ट और निॢववाद हैं। यदि एक ओर डॉ० सहस्रबुद्धे ने हिन्दू समाज और संस्कृति के प्रार?िभक विकास, संघटनात्मक प्रवृत्तियों और सामथ्र्य का विवेचन किया है, तो दूसरी ओर बाद के काल की विघटनात्मक, ह्रïासोन्मुख प्रवृत्तियों एवं गिरावटों का भी सूक्ष्म अध्ययन किया है। इतिहास में निष्ठा रखने वाला इन मान्यताओं और निष्कर्षों को नि:सन्देह स्वीकार करेगा। डॉ० सहस्रबुद्धे का दृष्टिकोण नि?नलिखित कथन में स्पष्ट है—'अत: भारतीय समाज में योग्य व्यक्तियों का निर्माण करना, आज का प्रथम कार्य है। भूमि तैयार है। अब केवल सेवा के तथा धर्मनिष्ठा के बल पर नये संस्कार बहुजन में उतारने का कार्य बाकी है। उसके लिए उस समाज में रहकर उससे एक रूप होकर धर्मक्रांति करने वाले लक्षाधिक युवक चाहिए। हिनन्दू समाज जिन्दा होगा तो ऐसे कार्यकर्ता प्राप्त होना कोई मुश्किल बात नहीं है। अब देखना है, यह समाज जिन्दा है या नहीं।Ó