Madhyakaleen Avadhi Ka Vikas / मध्यकालीन अवधी का विकास
Author
: Anil Kumar Tiwari
  Kanhaiya Singh
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Grammar, Language & Linguistics
Publication Year
: 2000
ISBN
: 8171242049
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: viii + 180 Pages, Append., biblio, Size : Demy i.e. 22 x 14 Cm.

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इस ग्रन्थ में अवधी के ध्वनि, शब्द, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि पर सोदाहरण विचार करते हुए जायसी और तुलसी की अवधी के अंतर की गहराई में पैठ कर विश्लेषित किया गया है। जायसी की अपनी सीमाएँ थीं। प्रेमाख्यानक परम्परा के अतिरिक्त उन्हें काव्य की अन्य परम्पराओं से कोई परिचय नहीं था। पर तुलसीदास को 'नानापुराणनिगमागमÓ की परम्परा विरासत में मिली थी। अत: उनकी भाषा में संस्कृत शब्दों का आना स्वाभाविक था। जायसी ठेठ अवधी के कवि हैं। उनकी अवधी में एक खास तरह की प्रत्यग्रता, मिठास और अवध की मिट्टïी की सोंधी गन्ध मिलेगी। किन्तु गोस्वामीजी का उद्देश्य व्यापक था, सांस्कृतिक था। उनकी भाषा में केवल संस्कृत शब्दों का ही मेल नहीं है। प्रचलित उर्दू-फारसी-अरबी के शब्द मिले हुए है। भाषा के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण के कारण उनका काव्य आज भी उतना ही लोकप्रिय है जितना पहले था। लेखक ने सही अर्थों में दोनों को जनकवि कहा है। गोस्वामी तुलसीदास और जायसी की अवधी का आधार ग्रहण कर अवधी का एक प्रामाणिक व्याकरण तो तैयार किया ही जा सकता है। विषय-क्रम : १. अवधी : स्वरूप और संरचना, २. ध्वनि-संरचना, ३. शब्द-विचार, ४. संज्ञा, ५. सर्वनाम, ६. क्रिया, ७. क्रिया, ८. अव्यय, ९. परिशिष्ट, १. मानस के विशिष्टï भासिक प्रयोग, २. संदर्भ ग्रन्थ-सूची।