Mudrarakshasam (Mahakavi Vishakhadutt) / मुद्राराक्षसम् (महाकवि विशाखदत्त प्रणीतं)
Author
: Ramashankar Tripathi
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: Sanskrit Literature
Publication Year
: 2021 - 6th Edition
ISBN
: 9788171246564
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxxx + 392 Pages, Append., Size : Demy i.e. 21.5 x 14 Cm.

MRP ₹ 200

Discount 15%

Offer Price ₹ 170

मुद्राराक्षस संस्कृत-साहित्य-जगत् का अत्यन्त प्रकाशमान हीरक है। इसके रचयिता विशाखदत्त है। मुद्राराक्षस की सबसे प्रमुख विशेषता है कि संस्कृत की सामान्य नाट्यधारा के प्रतिकूल इसमें प्रेमकथा का ही नितान्त अभाव है। अत: इसमें नायिका है ही नहीं। यही कारण है कि नायिका के अभाव में उसे आधार बनाकर उद्दीप्त होने वाले प्रणय के विषय का भी सर्वथा अभाव है। नायिका के समान ही नाटक के वातावरण को हास्य के छींटों से स्निग्ध तथा ललित बनानेवाले संस्कृत नाटक के प्राचीन विदूषक का भी इसमें दर्शन नहीं होता। वस्तुत: नायिका के अभाव में विदूषक की कमी की ओर ध्यान ही नहीं जाता। यहाँ राजनीति के कठोर दाँव-पेंच के मध्य विदूषक की चञ्चलता के लिए भला जगह ही कैसे मिल सकती है। यद्यपि यह नाटक घटनाप्रदान है। तथापि रस की दृष्टि से इसमें वीररस का उद्भेद हुआ है। यहाँ सबसे विचित्र बात तो यह है कि इस नाटक में वीररस को उद्दीप्त करने के लिए न तो दुन्दुभी का गर्जन है और न तो युद्ध में चल रहे तीरों, खञ्जरों एवं गदाओं की झनझनाहट तथा गडग़ड़ाहट ही। आश्चर्य तो यह कि न अस्त्र-शस्त्र चले, न युद्ध में एक भी सैनिक धराशायी हुआ, किन्तु फिर भी विजय तथा पराजय का परिणाम सबके सम्मुख उपस्थित हो जाता है। विशाखदत्त नाट्यशास्त्र के सुयोग्य ज्ञाता थे। वे उसके नियमों से पूर्ण परिचित थे। किन्तु वे उसका अक्षरश: पालन न करके अपनी वैयक्ति प्रतिभा के चमत्कार को भी दिखलाने का सफल प्रयास किये हैं। नाट्य नियमों के फौलादी पंजों से मुद्राराक्षस की कविता-सुन्दरी को बचाने का सफल प्रयास हुआ है। प्राचीन रूढि़ के अनुसार इस नाटक का नायक प्रख्यात वंश का कोई राजा न होकर एक साधारण सा ब्राह्मïण है जिसकी असाधारण प्रतिभा की प्रशंसा आज भी सर्वत्र होती है। इस नाटक की पाँचवी विशेषता है—इतिवृत्त अथवा प्लॉट की चातुरतापूर्ण योजना। आदि से अन्त तक समूचा नाटक एक गति, एक लक्ष्य की ओर अनवरत अग्रसर है। जैसे एक मॉझी अपने सहस्र तन्तुओं से निॢमत विशाल जाल को अथाह जल में फेंक देता है। जल के भीतर प्रविष्ट होनेवाले जाल के सभी तन्तु बिखरते हुए से दृष्टिगोचर होते हैं। किन्तु ठीक समय पर जब वह माझी उस जाल को खींंचता है तब सभी तन्तु एक ओर ही बढ़ते हुए दिखलाई पड़ते हैं और अन्त में सभी मिलकर माझी के लिए सुन्दर परिणाम प्रस्तुत करते हैं।