Dasharupakam (Dhananjayavirachitam) / दशरुपकम् : धनिककृतयाऽवलोकटीकया समेतं (धनञ्जयविरचितं)
Author
: Dhananjaya
Dhanika
Ramashankar Tripathi
Dhanika
Ramashankar Tripathi
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Sanskrit Literature
Publication Year
: 2021, 5th Edition
ISBN
: 9788171247653
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxxii + 376 Pages, Append., Size : Demy i.e. 22 x 14 Cm.
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The Dasarupaka of Dhananjaya with Avaloka of Dhanika
नाट्यशास्त्र के इतिहास में 'दशरूपक' मानदण्ड की भाँति स्थित है। भरत के नाट्यशास्त्र के रूपकविषयक सिद्धान्तों का संक्षिप्त पर सर्वाङ्गïीण विवेचन इसकी मौलिकता है। इसके उत्तरभावी नाट्यविषयक ग्रन्थ इसकी दमकती आभा को किञ्चित् भी मलिन नहीं कर सके हैं। वस्तुत: यह ग्रन्थ-रत्न धनञ्जय एवं धनिक-बन्धुद्वय-की समवेत प्रतिभा का अनघ अखण्ड फल है। ऐसे अमर-ग्रन्थ की अनवद्य व्याख्या प्रस्तुत करने का भला नदीष्ण विद्वानों के अतिरिक्त कौन दम भर सकता है? फिर भी इसकी यह नवीन व्याख्या प्रस्तुत की गयी है, इसे गुरुओं तथा विद्वानों की कृपा का प्रसाद ही समझना चाहिए। कोई भी व्यक्ति इस संस्करण के माध्यम से, बिना किसी की सहायता लिए हुए भी, धनञ्जय एवं धनिक के गम्भीर भावों तक अनायास पहुँच सकता है। प्रारम्भ में अनुसन्धानात्मक भूमिका के साथ इस संस्करण को अर्थ, विशेष, पूर्वपक्ष, सिद्धान्त तथा संस्कृत टिप्पणी आदि से सज्जित करने का भरपूर प्रयत्न किया गया है। विषयानुक्रम : भूमिका, प्रथम प्रकाश : वस्तु-निरूपण, द्वितीयप्रकाश : नायक-नायिका भेद, तृतीय प्रकाश : रूपकों के प्रकार, चतुर्थ प्रकाश : रस-विवेचन, परिशिष्टï 1, उदाहृदश्लोकानामनुक्रमणिका।
नाट्यशास्त्र के इतिहास में 'दशरूपक' मानदण्ड की भाँति स्थित है। भरत के नाट्यशास्त्र के रूपकविषयक सिद्धान्तों का संक्षिप्त पर सर्वाङ्गïीण विवेचन इसकी मौलिकता है। इसके उत्तरभावी नाट्यविषयक ग्रन्थ इसकी दमकती आभा को किञ्चित् भी मलिन नहीं कर सके हैं। वस्तुत: यह ग्रन्थ-रत्न धनञ्जय एवं धनिक-बन्धुद्वय-की समवेत प्रतिभा का अनघ अखण्ड फल है। ऐसे अमर-ग्रन्थ की अनवद्य व्याख्या प्रस्तुत करने का भला नदीष्ण विद्वानों के अतिरिक्त कौन दम भर सकता है? फिर भी इसकी यह नवीन व्याख्या प्रस्तुत की गयी है, इसे गुरुओं तथा विद्वानों की कृपा का प्रसाद ही समझना चाहिए। कोई भी व्यक्ति इस संस्करण के माध्यम से, बिना किसी की सहायता लिए हुए भी, धनञ्जय एवं धनिक के गम्भीर भावों तक अनायास पहुँच सकता है। प्रारम्भ में अनुसन्धानात्मक भूमिका के साथ इस संस्करण को अर्थ, विशेष, पूर्वपक्ष, सिद्धान्त तथा संस्कृत टिप्पणी आदि से सज्जित करने का भरपूर प्रयत्न किया गया है। विषयानुक्रम : भूमिका, प्रथम प्रकाश : वस्तु-निरूपण, द्वितीयप्रकाश : नायक-नायिका भेद, तृतीय प्रकाश : रूपकों के प्रकार, चतुर्थ प्रकाश : रस-विवेचन, परिशिष्टï 1, उदाहृदश्लोकानामनुक्रमणिका।