Mata Bhumih Putroham Prithivyah / माता भूमि: पुत्रोहं पृथिव्या: (नव काव्य संकलन)
Author
: Shambhu Nath Singh
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Hindi Poetical Works / Ghazal etc.
Publication Year
: 1990
ISBN
: 8171240550
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xiv + 114 Pages, Size : Demy i.e. 22 x 14 Cm.

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यह संकलन दो खण्डों में विभाजित है - प्रथम खण्ड 'माता भूमि:' की कवितायें नवगीत और दूसरे खण्ड 'पुत्रोऽहं पृथिव्या:' की कवितायें नवकाव्य है। 'माता भूमि:' की कवितायें नवगीत की एक ऐसी छाया को उद्रासित करती है जो हिन्दी साहित्य में एक सर्वथा नयी भूमि को उजागर करती है। इनमें भारत भूमि के उन स्थानों, वस्तुओं और परिदृ्श्यों पर कवि की दृष्टि पड़ी है जो पूर्ववर्ती किसी भी युग के कवियों की दृष्टि से अछूते रह गये थे। उनसे भारतीय मानस के न जाने कितने प्रकार के रिश्ते है, सौन्दर्य भावना का रिश्ता, गूढ़ता और विराटता के प्रति सहज आकर्षण का रिश्ता तथा अन्य असं?य रिश्ते जो मनुष्य और उसकी मातृभूमि के बीच होते हैं। इन सभी भावनाओं से 'माता भूमि:'  के गीत उद्वेलित हुए हैं। इस कारण उनमें लयात्मक अनुरंजन और गहरी सौन्दर्यानुभूति जो अपूर्व और सर्वथा अछूती है ये सभी गीत भारत भूमि से गहराई तक जुड़े हैं। चाहे समुद्र का गहरा नीला और गहन विस्तार हो, चाहे हिमालय की आश्चर्यजनक ऊँचाई और गहरी पेचीदगी से भरी घाटियाँ हो, अरुणाचल की सौन्दर्य भरी भूमि हो या गहरी कश्मीर और हिमाचल प्रदेश की बर्फीली चोटियाँ और घाटियाँ हो, चाहे उत्तर भारत में दूर-दूर तक अपनी बाहें पसारे बहती गंगा के तटवर्ती नगरों, घाटों और मन्दिरों के परिदृश्य हों, चाहे विन्ध्याचल क्षेत्र में स्थित खुजराहो के मन्दिर हों या गंगा से मिलने वाली सदानीरा नदियों-सरयू और छोटी गण्डक की तटीय भूमि हो, ये सभी माता भूमि: के गीतों में रूपायित हुए है। इस संकलन के उत्तराद्र्ध भाग 'पुत्रोहं पृथिव्या:' में भारत के निवासी मानवों ने दु:ख-दर्द, युद्ध-संघर्ष, व्यथा और पीड़ा का तथा पाश्चात्य सभ्यता के विषाक्त प्रभावों और महानगरों की भयानक पीड़ा का मर्मस्पशी चित्रण किया गया है। उत्तरार्ध की कवितायें छन्दमुक्त रचनायें हैं। इनमेंं गीत के चौखटों को तोड़कर खुरदुरे और उबड़-खाबड़ कथ्य के अनुरुप कविता के नये चौखटों का निर्माण किया गया है। महानगरों के वहशीपन, भीड़ और दहशत तथा षडय़न्त्र और हत्या, औद्योगिक सभ्यता की सड़ाँध बदबू और घुटन का चित्रण यह स्पष्ट करता है कि कवि शम्भुनात सिंह केवल गीतों के चौखटे में बद्ध कवि नहींं है। उनकी शर्त इतनी ही है की कविता चाहे गीतात्मक और लयात्मक हो यो मुक्त छन्द की या छन्द मुक्त हो पर उसे सम्प्रेषणीय अवश्य होना चाहिये।