Shri Chandravali (Natika) / श्रीचन्द्रावली (नाटिका)
Author
: Bhartendu Harishchandra
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: Hindi Plays / Drama
Publication Year
: 1992
ISBN
: 9VPCHANDRAVAP
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxxxviii + 88 Pages, Size : Crown i.e. 18 x 12 Cm.

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कहा जाता है कि अपने बनाये हुए नाटकों में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को 'सत्य हरिश्चन्द्र', 'चन्द्रावली' और 'भारतदुर्दशा' ही सर्वाधिक प्रिय थे। 'सत्य हरिश्चन्द्र' और 'चन्द्रावली' को हिन्दी की टकसाल भी कहा गया है। 'चन्द्रावली' को तो साहित्य-प्रेमियों ने इतना अधिक पसन्द किया कि भरतपुर के राजा राव श्रीकृष्ण देवशरण सिंह ने पूर्ण रूप से उसका ब्रजभाषा में रूपान्तर और पण्डित गोपाल शास्त्री उपासनी ने संस्कृत में अनुवाद किया। 'चन्द्रावली' नाटिका की रचना प्राचीन नाट्य-शास्त्र के नियमानुसार हुई है। वह नाटिका के लगभग सभी लक्षणों से समन्वित है। 'चन्द्रावली' नाटिका की कथा चार अंकों में विभाजित है। विष्कंभक के बाद प्रथम अंक में चन्द्रावली और सखियों के वार्तालाप से चन्द्रावली का कृष्ण के प्रति उत्कृट अनुराग प्रकट होता है। द्वितीय अंक में चन्द्रावली उपवन में सखियों से विरह-वर्णन और विरहोन्माद में प्रलाप करती है। इस अंक के अंतर्गत अंकावतार में कृष्ण के नाम 'चन्द्रावली की पाती' का उल्लेख है। तृतीय अंक में विरहकातरा चन्द्रावली और उसकी सखियों में बातचीत होती है, चन्द्रावली अपने अलौकिक प्रेम का संकेत देती है और सखियाँ मिलन का उपाय ठीक करती हैं। इसी अंक में वर्षा और झूले का उद्दीपन-रूप में सुन्दर वर्णन है। चतुर्थ अंक में जोगिनी का वेष धारण कर श्रीकृष्ण आते हैं और स्वामिनीजी की आज्ञा से श्रीकृष्ण और चन्द्रावली का मिलन स्थापित होता है।