Radio Ka Kala Paksha / रेडियो का कलापक्ष
Author
: Neerja Madhav
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Journalism, Mass Communication, Cinema etc.
Publication Year
: 2006
ISBN
: 817124498X
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 100 Pages, Size : Demy i.e. 22 x 14.5 Cm.

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छन्दमुक्त कविता की तरह ही रेडियो के आगमन के साथ नाटक भी कई बन्धनों से मुक्त हुआ, जैसे-रुप, रंग, प्रकाश-योजना आदि। जिस प्रकार छन्दों से मुक्ति के साथ ही कविता के संसार में एक आन्दोलन हुआ और एक नये काव्य-युग का सूत्रपात हुआ उसी प्रकार श्रव्य माध्यम रेडियो के आविष्कार के साथ नाटक के स्वरुप में भी एक क्रान्तिकारी परिवर्तन स्पष्टï रुप से दृष्टिïगोचर होने लगा। रंगमच पर नाटकों की प्रस्तुति हमारे यहाँ की अति प्राचीन कला थी। साहित्य में इसे दृश्य काव्य की संज्ञा प्राप्त थी। इस दृश्य काव्य की एक विशेषता यह भी थी कि यह श्रव्य भी था। समय बदला, युग बदला। नाटकों और मंचों का स्वरुप भी बदला। लेकिन नाटक का मूलतत्त्व, संवाद और अभिनय आज भी अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। रेडियो ने इस दृश्य श्रव्य साहित्यिक विधा को केवल श्रव्य बनाते हुए इसकी अभिव्यक्ति में नये प्राण फूँके। अदृश्य अन्धेरा ही इसका रंगमंच होता है। ध्वनि के माध्यम से यह नाटक श्रोताओं की कल्पना को उद्भूत करता है और वह अपने मानस में ध्वनि के आधार पर एक लोक का सृजन करता है। संगीत और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से दिव्य दृश्यों जैसे स्वर्ग, नक्षत्र, अतीत के वैभवशाली चित्र, युद्ध, तूफान, बरसात, बिजली का कड़कना, मोर का बोलना आदि अनेक ऐसे दृश्य होते हैं जिनको बहुत सफलता पूर्वक सजीव ढंग से श्रोताओं की मन की आँखों के स म्मुख प्रस्तुत किया जा सकता है।