Vaitarni Se Vaishwanar Tak Ki Yatra (Reference : Noves of Shiv Prasad Singh) / वैतरणी से वैश्वानर तक की यात्रा (सन्दर्भ : ïिशवप्रसाद सिंह के उपन्यास)
Author
: Anand Kumar Pandey
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2006
ISBN
: 8171244939
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 196 Pages, Append., Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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और यह पुस्तक............. प्रसाद और प्रेमचंद के बाद बनारस में चमत्कार की तरह प्रतिष्ठित होने वाले लेखक कहीं से भी बनारसी नहीं थे। घरबारी गृहस्थ जीवन जीते हुए उन्होंने किताबें ही नहीं पढ़ीं, बनारस को पढ़कर जाना था। बनारस में रचना और आलोचना के बीच जिस तरह का तालमेल 1950 के बाद हिन्दी में बैठा उससे उनका कोई मेल-मिलाप नहीं हुआ। वे अकेले थे, अद्वितीय। उनका आमना-सामना होता रहता था। कभी 'कल्पनाÓ में मारकण्डेय के सामने 'आलोचनाÓ में नामवर ङ्क्षसह के सामने। आलोचना में हरदेव बाहरी या रामविलास शर्मा से। वे निरन्तर अकेले होते गये। बनारस में उनके स्थापित होते-होते उनके गुरु द्विवेदी जी बाहर गए। जो यहाँ आया उसे उनका हो जाना पड़ा। द्विवेदी जी लौटे तो फिर उन्हीं के हो गये। उनके लिए चौंकाने वाली घटनाएँ हुईं। उनकी घिग्घी बँधी और वे चुप गये। बीमार हुए सारी दुनियाँ उनके पाँवों में बिछ गयी। ठीक हुए इतना लिखा, इतनी प्रतिष्ठा मिली, इतने पुरस्कार कि प्रेमचंद की मूॢत पर प्रमाण-पट्ट का आलेख उन्हें लिखना पड़ा। खाली हाथों नहीं, उनकी अंजुरी भर कर। प्रेम, श्रद्धा, अनुनय और लक्ष्मी से उन्हें सम्पन्न किया गया। वे बनारसी नहीं हो पाये लेकिन बनारस पर उन्होंने तीन क्लैसिक लिखा। बनारस उनके लिए प्रतीक था। वे बनारस के प्रतीक हो गये। फक्कड़ बनारसी कबीर को उन्होंने अक्खड़ अन्दाज में हाँथों-हाथ उठाया कि जैसे कबीर मगहर हो गये वे शिव लोक से शिव-सायुज्य की स्थिति तक पहुँचे। गये तो ऐसे कि एक साथ कई रोगों ने हमला किया, फिर गये तो लोगों ने श्रद्धा में सिर झुकाने के बावजूद मुँह मोड़ लिया। महॢष अरविन्द, श्री माँ, तमाम इष्टाविष्ट देवियाँ उनके भाग्य-चक्र में अपने थे, अपने नहीं हुए। कुछ ही दिन हुए लोग उन्हें भूलते जा रहे हैं। लेकिन 2005 में जब से कुछ लोगों की बेदखली शुरू हुई है वे मुख्य पृष्ठ पर आ गये हैं। दिल्ली, जबलपुर,बनारस, उत्तर, दक्षिण सर्वत्र उनके साहित्य का मंथन जारी है। ऐसे स्मरणीय शिल्पी पर डॉ० आनन्द कुमार पाण्डेय की पुस्तक एक खास तरह से पहल कर रही है। यह किताब एक तरह का निमंत्रण है। लोग इसे पढ़ेंगे फिर शिव प्रसाद जी को पढ़ेंगे। चुप नहीं रहेंगे। उन पर लिखित जारी रहेगी, लिखत की पढ़त भी जारी रहेगी। - डॉ. शुकदेव ङ्क्षसह