Pragatisheel Hindi Alochana Ki Rachna Prakriya / प्रगतिशील हिन्दी आलोचना की रचना प्रक्रिया

Author
: Haosila Prasad Singh
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 1991
ISBN
: 8171240690
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 188 Pages, Biblio., Size : Demy i.e. 22 x 13.5 Cm.
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प्रगतिशील हिन्दी आलोचना का अपना एक इतिहास है। एक समय था जब रीतिकालीन कविता सामन्तों और पूँजीपतियों के संरक्षण में पल रही थी; व्यक्तिवाद, कलावाद, उपभोक्ता संस्कृति और गुलामी की मानसिकता को बढ़ावा दे रही थी, उस समय स्वतन्त्रता आन्दोलन की राष्ट्रीय और जातीय चेतना ने न केवल उसका विरोध किया बल्कि उससे सीधा संघर्ष भी किया। रचना और आलोचना के स्तर पर भी यह संघर्ष और द्वन्द्व सामने उभड़कर आया। द्वन्द्वात्मकता की इसी वैचारिक विचारधारा ने रचना और आलोचना को एक नया स्वरूप प्रदान किया जिसमें नवजागरण की चेतना की बहुलता थी। इस चेतना ने रचना और आलोचना को जमीन और जन से जोडऩे का जो प्रयास किया, उससे न केवल रचना के प्रतिमान में बदलाव आया बल्कि आलोचना के प्रतिमान में भी परिवर्तन आया। बदलाव की यह प्रक्रिया पूरी तरह से प्रगतिशील चेतना से सम्बद्ध थी।
प्रगतिशील हिन्दी आलोचना का सृजन और विकास पुराने पोथियों और मतों के सहारे नहीं हुआ है। यह मानव-समाज और मानव-जीवन की विकास-प्रक्रिया के बोध और उसके बदलने-बनने के प्रयत्न में सक्रिय साझेदारी के बीच से पनपा है। आज तक जितने आलोचक इतिहास के पन्नों में अपने नाम लिखा गए हैं या जो अभी उसमें नाम लिखाने के लिए आलोचना-कर्म की बहुविध रचना कर रहे हैं, उन्होंने भले ही नया साहित्यशास्त्र न रचा हो, पर कुछ ऐसे सूत्र और समीकरण अवश्य दिये हैं जिनके सहारे किसी भी रचना का मूल्यांकन निष्पक्ष रूप में किया जा सकता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की 'रसमीमांसाÓ और 'चिन्तामणिÓ (भाग 1, 2, 3); आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी की 'हिन्दी साहित्य : बीसवीं शताब्दीÓ, 'आधुनिक साहित्यÓ, 'नया साहित्य : नये प्रश्नÓ और 'नयी कविताÓ तथा आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की 'साहित्य का मर्मÓ, 'साहित्य-सहचरÓ, 'विचार और वितर्कÓ, 'विचार प्रवाहÓ आदि पुस्तकें आलोचना को एक नया समीकरण देने में सक्षम है। इस नये समीकरण को आगे चलकर जिन आलोचकों ने विकसित किया है उनमें गजाननमाधव मुक्तिबोध, रामविलास शर्मा और नामवर ङ्क्षसह के नाम उल्लेखनीय हैं। यह पुस्तक मुक्तिबोध के पहले के प्रगतिशील हिनन्दी आलोचकों की आलोचना का इतिहास प्रस्तुत करता है।