Purvi Apbhransh Bhasha / पूर्वी अपभ्रंश भाषा
Author
: Radhakant Mishra
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Grammar, Language & Linguistics
Publication Year
: 1993
ISBN
: 8171241050
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xvi + 192 Pages, Biblio., Gloss., Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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पतंजलि के अनुसार अपभ्रंश भाषा में संस्कृत के वे भ्रष्ट रूप हैं जो बोलियों में प्रचलित थे। प्रमुख प्राकृत वैयाकरणों ने अपभ्रंश को परवर्ती काल की भाषा कहा है। भामह के समय (छठी शती ई०) तक संस्कृत और प्राकृत के साथ अपभ्रंश में काव्य-रचना होने लगी थी। दण्डी (7वीं अथवा 8वीं शती) के समय यह अधिक प्रसारित हुईं। राजशेखर (850-920 ई०) के अनुसार अपभ्रंश को 'काव्यपुरुषÓ को जंघा कहा गया है। विद्वान् लेखक ने इस पुस्तक में आधुनिक पूर्वी आर्यभाषाओं के एक मूल रूप पूर्वी अपभ्रंश की भाषिक विशेषताओं का समन्वित विवेचन किया है, ताकि पूर्वी अपभ्रंश का भाषिक स्वरूप उजागर हो सके। पूर्वी अपभ्रंश के भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन के लिए सिद्धों की रचनाओं के अतिरिक्त आधुनिक पूर्वी आर्य भाषाओं की प्राचीन आधार को भी आधार बनाया गया है। भाषिक विकास के चार चरण—संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और आभाषा के विवेचन में ऐतिहासिक विकास दिखाया गया है। अध्ययन को ध्वनि विज्ञान, रूप विज्ञान और वाक्य विज्ञान जैसे तीन अध्यायों में विभाजित कर प्रस्तुत किया गया है।