Vedamritam (Vol.01) : Sukhi Jeevan / वेदामृतम (भाग-1) : सुखी जीवन
Author
: Padmashri Dr. Kapil Deva Dvivedi
Language
: Hindi + Sanskrit
Book Type
: General Book
Category
: Ved, Puran, Smriti, Upnishad etc.
Publication Year
: 1991, Second Edition
ISBN
: 8185246041
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: 160 Pages; Size : 17 x 12.5 Cm.

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वेद आर्य जाति का सर्वस्व है, मानव-मात्र का प्रकाश स्तम्भ और शक्ति-स्रोत है। वेदों का प्रकाश संसार भर में फैलकर मानव-जीवन में व्याप्त निराशा, अज्ञान, अन्धकार, दुर्विचार, अनाचार, दुर्गुण, आधि-व्याधि और दिशा-भ्रम को दूर करे, जिससे ज्ञान, आचार, संयम और सुसंस्कृति का आलोक सर्वत्र व्याप्त हो। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए चारों वेदों से विभिन्न विषयों पर मन्त्रों का संकलन किया गया है। वेदों के मन्त्र सरल संस्कृत के तुल्य सुबोध और हृदयंगम हो सकें, इसलिए प्रत्येक मन्त्र का अन्वय, शब्दार्थ, अनुशीलन, टिप्पणी आदि देकर उसे सुगम बनाया गया है। साधारण हिन्दी जानने वाला व्यक्ति भी इस प्रकार वेदों के अमृत का रसास्वाद कर सकता है।
इस वेदामृतम् ग्रन्थमाला की योजना है कि वेदों में वर्णित सभी ज्ञान और विज्ञान के विषय पृथक्-पृथक् ग्रन्थों में विषयानुसार वर्णित हों। इसलिए विषयानुसार वेदामृतम् 40 खण्डों में प्रकाशित किया गया है। 
प्रत्येक मन्त्र को अत्यन्त सरल ढंग से समझाने के लिए सर्वप्रथम मन्त्र का अन्वय दिया गया है। अन्वय के अनुसार ही प्रत्येक शब्द का हिन्दी में अर्थ दिया गया है। तदनुसार मंत्र का हिन्दी में अर्थ है और उसके पश्चात मंत्र का अंग्रेजी अनुवाद भी अंग्रेजी जानने वालों की सुविधा के लिए दिया गया है। अनुशीलन में मन्त्र का भाव व्यवस्था के ढंग से समझाया गया है। मंत्र में व्याकरण आदि की दृष्टि से व्याख्या के योग्य शब्दों का प्रकृति-प्रत्यय आदि टिप्पणी में दिया गया है। इससे पाठक मंत्रों का अर्थ आदि सूक्ष्मता के साथ समझ सकेंगे।
प्रत्येक भाग में उस विषय से सम्बद्ध 100 मंत्र दिए गए हैं। चारों वेदों में उस विषय पर जो सरल और अत्यन्त उपयोगी मंत्र प्राप्त हुए हैं, उन्हें चुना गया है। वेद-प्रेमियों के लिए चार मंत्र अवश्य स्मरणीय हैं, गायत्री मंत्र, विश्वानि देव., ईशा वास्यमिदं सर्वम्, स्तुता मया वरदा वेदमाता, अतः ये चार मन्त्र बीज-मंत्र के रूप में सभी भागों में समाविष्ट किए गए हैं। चारों वेदों से सरलतम मंत्रों का ही इसमें संकलन है। मंत्रों को विषय और भाव की दृष्टि से क्रमबद्ध किया गया है। मन्त्रार्थ के विषय में महर्षि पतंजलि के वैज्ञानिक मन्तव्य को अपनाया गया है कि यच्छब्द आह तदस्माकं प्रमाणम्जो शब्द कहता है, वह हमारे लिए प्रमाण है। मन्त्र के पाठ से जो अर्थ स्वयं निकलता है, उस अर्थ को ही लिया गया है। एक परमात्मा के ही अग्नि, इन्द्र, वरुण आदि नाम हैं, अत यथास्थान इन शब्दों का अर्थ परमात्मा दिया गया है। प्रत्येक मन्त्र में कुछ उपयोगी शिक्षाएँ हैं। उनको अनुशीलन में स्पष्ट किया गया है। आवश्यकतानुसार अन्य ग्रन्थों से भी उपयोगी एवं भाव-साम्य वाले सुभाषितों को इसमें समाविष्ट किया गया है। नैतिक एवं जीवनोपयोगी शिक्षाओं का विवरण मुख्यरूप से दिया गया है। ज्ञानवृद्धि के लिए अनुशीलन की विशेष उपयोगिता है। विज्ञ पाठकों के लिए टिप्पणी में दिया गया व्याकरण आदि का निर्देश विशेष लाभकर सिद्ध होगा। प्रत्येक भाग में दिए मन्त्रों में प्राप्त 100 सुभाषित हिन्दी अर्थ के साथ ग्रंथ के अन्त में दिए गए हैं। ये सुभाषित कण्ठस्थ करने योग्य हैं। वेदामृतम् ग्रन्थमाला के अन्तर्गत लिखा गया यह पहला भाग है । इसमें सुखी जीवन से सम्बद्ध सौ मंत्र चारों वेदों से छांटकर दिए गए हैं। जीवन सुखी बनाने के लिए स्वास्थ्य, स्वावलम्बन, सत्य, इच्छाशक्ति आदि अनेक उपाय वेदों में दिए गए हैं। इसमें प्रत्येक मंत्र का शब्दार्थ, हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद तथा विस्तृत टिप्पणी दी गयी है ।