Acharya Ramchandra Shukla Aur Unke Samkalin Alochak / आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और उनके समकालीन आलोचक
Author
: Ramchandra Tiwari
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2007
ISBN
: 8171245293
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: viii+84 pages, Size : Demy i.e. 21.5 x 14 Cm.

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आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के समकालीन आलोचकों में सामान्यत: बाबू श्यामसुन्दरदास, पं० पद्मङ्क्षसह शर्मा, पं० कृष्णबिहारी मिश्र, लाला भगवानदीन और बाबू गुलाबराय की गणना की जाती है। यह समकालीनता इनकी विद्यमानता को दृष्टि में रखकर निर्धारित की गई है। अन्यथा समीक्षा-दृष्टि और उसकी चरितार्थता के स्तर पर इनके रास्ते अलग-अलग हैं। पं० पद्मङ्क्षसह शर्मा, पं० कृष्णबिहारी मिश्र और लाला भगवानदीन तुलनात्मक आलोचना के पक्षधर हैं जबकि बाबू श्यामसुन्दरदास आलोचक से अधिक व्यवस्थापक हैं। 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना करके आपने ऐतिहासिक महत्त्व का कार्य किया है। उनका अधिक से अधिक समय हिन्दी के प्रचार-प्रसार तथा प्राचीन हिन्दी-पुस्तकों के उद्धार में लगा है। उन्होंने शिक्षोपयोगी पुस्तकें तैयार कराने में अधिक रुचि दिखाई है। उनकी खुद की दो प्रसिद्ध पुस्तकें-'साहित्यालोचन' और 'रूपकरहस्य' उ'च कक्षा के छात्रों को दृष्टि में रखकर ही तैयार की गई हैं। तुलनात्मक आलोचकों में भी इन सबकी दृष्टि और शैली में पर्याप्त अन्तर है। पं० पद्मसिंह शर्मा समीक्ष्य कृति का आकलन परम्परा के बीच रखकर करते हैं। उनकी शैली में प्रगल्भता अधिक है। पं० कृष्णबिहारी मिश्र अधिक शिष्ट और सन्तुलित हैं। उनका पाश्चात्य साहित्य का अध्ययन भी अपेक्षाकृत अधिक है। लाला भगवानदीन उर्दू-फारसी की ओर अधिक देखते हैं। प्राचीन कवियों का उनका अध्ययन औरों से कुछ अधिक ही है। बाबू श्यामसुन्दरदास सर्वाधिक समन्वयशील हैं। उन्होंने पाश्चात्य आलोचकों को भी पढ़ा है किन्तु उन्हें आत्मसात् करके अनुभूति का विषय नहीं बना पाये हैं। बाबू गुलाबराय भी सामान्ïयत: समन्ïवयशील हैं किन्ïतु उनमें गहराई है और उन्ïहोंने जो कुछ कहा है वह तर्कपुष्ट और मनोवैज्ञानिक है।