Viveki Rai Aur Unka Srijan Sansar / विवेकी राय और उनका सृजन संसार
Author
: Mandhata Rai
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2007
ISBN
: 9788171245598
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xx + 164 Pages, Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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साहित्य अपने समय का सच्चा इतिहास होता हैÓ—प्रेमचंद के कथा गँवई सच का डॉ० विवेकी राय के साहित्य में पूरी तरह साक्षात किया जा सकता है, जहाँ स्वातंत्र्योत्तर भारतीय गाँवों का सच चित्रित तो है ही, साथ-साथ नवसृजनवादी सोच को पर्याप्त प्रोत्साहन तथा प्रगतिशील सामाजिक ढाँचे को मजबूत करने का प्रयास भी मुखर है। —डॉ० नामवर ङ्क्षसह अपने अंचल के बीच लगातार जीते चलने के कारण वहाँ के पात्रों, उनके सम्बन्धों, समस्याओं, मूल्य-संक्रमण, लोकगीतों व लोक-व्यापारों आदि की प्रामाणिक छवि उनके साहित्य में उभरती रही है, उभरती जा रही है। लगता है उनके अनुभवों में लगातार बदलता हुआ अंचल अपने बहुआयामी यथार्थ के साथ खलबला रहा है और उनके उपन्यासों, निबन्ध और कहानियों के माध्यम से फूट पडऩे को आकुल-व्याकुल है। —डॉ० रामदरश मिश्र कथाकार, उपन्यासकार, ललित निबंधकार, समीक्षक, संस्मरणकार—कितनी ही विधाओं में उनकी कलम चलती रही है। वे खड़ी बोली के अलावा भोजपुरी में भी बहुत कुछ लिख चुके हैं। सोनामाटी, लोकऋण, नमामि-ग्रामम जैसे उपन्यास ग्राम केन्द्रित महाकाव्य जैसे हैं। आंचलिक लेखन की सबसे बड़ी विभूति के रूप में फणीश्वरनाथ रेणु प्रतिष्ठित हैं। विवेकी राय उसके बाद सबसे बड़े ग्राम लेखक हैं। —डॉ० एन.ई. विश्वनाथ अय्यर विवेकी राय ने हिन्दी को जितने नये शब्द दिये हैं, प्रेमचंद के बाद शायद ही कोई दूसरा उपन्यासकार दे सका है। —डॉ० गोपाल राय