Prachin Bharat Ka Samajika Evam Aarthik Itihas / प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास

Author
: Sharad Singh
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: History, Art & Culture
Publication Year
: 2011
ISBN
: 9788171245925
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xii + 337 Pages + 7 Plates + 4 Maps, Biblio, Append, Size : Demy i.e 22.5 x 14.5 Cm.
MRP ₹ 400
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प्राचीन भारत की संस्कृति का निरन्तर प्रवाह एवं सार्वभौम दृष्टि तथा आर्थिक समृद्धि सदैव ही वैश्विक जिज्ञासा का विषय रही है। प्राचीन भारत में समाज की अवधारणा, समाज एवं परिवार का स्वरूप, आश्रम व्यवस्था—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की अवधारणा, वर्ण एवं जाति व्यवस्था, दास प्रथा, स्त्रियों की स्थिति, स्त्रियों के अधिकार, पर्दा प्रथा, शूद्रों की स्थिति व अस्पृश्यता, संस्कार, शिक्षा पद्धति, नैतिकता आदि का ज्ञान वर्तमान में जीवन के मूल्यों को स्थापित करने में आधारभूत स्रोत की भूमिका निभाता है। फलस्वरूप आज का व्यक्ति बार-बार अतीत के पन्ने पलटता है। अतीत की इसी अध्ययन-यात्रा में डॉ० शरद सिंह की यह पुस्तक प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी है।
पुस्तक की लेखिका डॉ० शरद सिंह एक विदुषी इतिहासकार एवं साहित्यकार हैं। इतिहास एवं साहित्य विषयक इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रस्तुत पुस्तक में लेखिका ने विषयवस्तु को इतनी सहज एवं बोधगम्य भाषा-शैली में पिरोया है कि यह पुस्तक निश्चित रूप से प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के विद्यार्थियों, शोधार्थियों के साथ अन्य पाठकों को भी रुचिकर लगेगी।
— प्रो० मारुतिनन्दनप्रसाद तिवारी
पूर्व विभागाध्यक्ष,
कला-इतिहास विभाग, कला संकाय
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
वाराणसी
डॉ० (सुश्री) शरद सिंह द्वारा लिखित 'प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास' उपयोगी पुस्तक है। इसके प्रथम खण्ड में सामाजिक दशा का दिग्दर्शन कराया गया है, जिसके अन्तर्गत तत्कालीन वर्ण-व्यवस्था, जाति-प्रथा के साथ-साथ परिवार की संरचना का भी वर्णन है। विविध संस्कार और उनकी सामाजिक उपयोगिता के अतिरिक्त लेखिका ने मनुष्य के कर्तव्यों का भी बोध कराया है। आहार-विहार के साथ ही जीवन में कला की सार्थकता तथा उसके स्वरूप पर भी प्रकाश डाला गया है। पुस्तक में भारतीय समाज के दोषों यथा—जाति-प्रथा, ऊँच-नीच की भावना और अस्पृश्यता आदि का भी वर्णन करना लेखिका नहीं भूली हैं।
पुस्तक का दूसरा खण्ड आर्थिक जीवन से सम्बन्धित है। कृषि, भारत में जीवन-यापन का प्रमुख साधन रहा है जिससे सम्बन्धित क्षेत्र (खेत), उनका स्वामित्व, कृषि-कार्य तथा स्पादों का सटीक वर्णन पुस्तक में प्राप्ति होता है। उद्योग-धन्धों की उपादेयता तथा उनके प्रकार, श्रेणी और नियमों, विनिमय के साधन, वाणिज्य, वणिक और पण्य पर भी भली-भाँति प्रकाश डाला गया है। पुस्तक में भारत और दक्षिणी पूर्वी एशिया तथा पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक समबन्धों का भी रोचक विवरण दिया गया है।
डॉ० शरद सिंह ने दो परिशिष्टों में उपभोक्ता संरक्षण तथा वैदिक जल संरक्षण चेतना का वर्णन करके पुस्तक को और अधिक सार्थक तथा सामयिक बना दिया है। मेरा विश्वास है कि समग्र रूप में पुस्तक छात्रों और अध्यापकों तथा सामान्य सुधी पाठकों के लिये रुचिकर और हितकर होगी।
—प्रो० (डॉ०) अँगने लाल
पूर्व कुलपति, डॉ० राममनोहर लोहिया
अवध विश्ïवविद्यालय, फैजाबाद एवं प्रोफेसर, प्रा०भा० इतिहास और पुरातत्ïव (सेवानिवृत्त)
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ