Bharat Ke Nav-Nirman Ka Ahvana / भारत के नव-निर्माण का आवाहन
Author
: David Frawley (Vamadeva Shastri)
  Keshav Prasad Kayan
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: History, Art & Culture
Publication Year
: 2008
ISBN
: 9788189498306
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxxii + 264 Pages, Size : Demy i.e. 21.5 x 14 Cm.

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इस पुस्तक का आलोच्य विषय है हिन्दुत्व का पुनरुत्थान वह भी बौद्धिक स्तर पर। वर्तमान समय में ऐसे बुद्धिजीवी वर्ग को तत्पर होना चाहिेए। जो सूचना तंत्र तथा संगणक युग में उभरती हुई सूचना क्रांति का सफलतापूर्वक प्रतिरोध कर सके। इन नव प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों को हिन्दु विरोधी शक्तियों द्वारा फैलाए जा रहे प्रवाद का भी सम्यक् ज्ञान होना आवश्यक है। हिन्दुओं को जान लेना चाहिए कि इन हिन्दू विरोधी शक्तियों को इस कार्य के लिये बहुत बड़े परिमाण में आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराये जाते हैं। इसके साथ ही हिन्दू बुद्धिजीवियों को अपने समाज की त्रुटियों का भी विश्लेषण करते हुए हिन्दू समाज तथा समकालीन हिन्दू चिन्तकों का ध्यान उन त्रुटियों की ओर आकर्षित करना चाहिए तथा अपनी क्षमता के अनुरूप उन अपर्याप्तताओं का समाधान भी प्रस्तुत करना चाहिए। सबसे पहली आवश्यकता है कि हिन्दुओं को विश्व समुदाय के समक्ष अपने विचारों का प्रस्तुतीकरण स्पष्ट रूप से करना चाहिए, चाहे इसे वे लोग चुनौती ही क्यों न मानें। हिन्दुओं को अपने प्रतिपक्षियों से सावधान रहते हुए मीडिया तथा पाठ्यपुस्तकों में उनके द्वारा हिन्दू धर्म के विकृतिकरण का प्रभावी प्रतिवाद करना चाहिए। हिन्दुओं को अपनी महान आध्यात्मिक परम्परा के परिरक्षण का प्रयास सतत करते रहना चाहिए चाहे इसके लिये उन्हें सीमित आस्था वाले सम्प्रदायों से संघर्ष ही क्यों न करना पड़े। जिन सम्प्रदायों के सिद्धान्त स्पष्ट नहीं हैं उन सम्प्रदायों के प्रति सहिष्णुता के स्वयम्भू-शान्तिदूत बनने की आवश्यकता हिन्दुओं को नहीं होनी चाहिए। उन्हें अन्य सम्प्रदायों को अनावश्यक प्रसन्न करने के बजाय सत्य का ही आग्रही होना चाहिए, यह जानते और समझते हुए भी कि सत्य का साधक सदैव लोकप्रिय नहीं भी हो सकता है। पुराकालीन भारत के हिन्दुओं में हिन्दू धर्म के अन्तर्गत विभिन्न सम्प्रदायों एवं दार्शनिकों के साथ, सामाजिक सद्भाव को स्थायित्व प्रदान करते हुए शास्त्रार्थ की परम्परा थी।