Gunibhutavyangya Ka Siddhanta Aur Brihattrayi Mein Usaka Prayog / गुणीभूतव्यङ्ग्य का सिद्धान्त और बृहत्त्रयी में उसका प्रयोग
Author
: Nandita Srivastava
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Sanskrit Literature
Publication Year
: 2007
ISBN
: 9788171245772
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xii + 254 Pages, Size : Demy i.e. 23 X 14 Cm.

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संस्कृत काव्य-शास्त्रीय जगत में आचार्य आनन्दवर्धन ने पूर्ववर्ती आलंकïारिकों के भिन्न सर्वथा नवीन ध्वनि-सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है, जिसमें व्यङ्ग्यार्थ को काव्य के आत्मभूत-तत्त्व के रूप में प्रतिपादित किया गया है। आचार्य मम्मट एवं मम्मटोत्तर युगीन आलंकïारिकों ने आचार्य आनन्दवर्धन के मत का ही अनुकरण किया है। अत: प्रस्तुत ग्रन्थ में आचार्य आनन्दवर्धन के अनुसार गुणीभूतव्यङ्गï्य काव्यविधा का सिद्धान्त प्रतिपादित करते हुए मम्मट एवं उनके परवर्ती आलंकïारिकों के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया गया है। आनन्दवर्धन ने इस काव्यविधा को गुणीभूतव्यङ्ग्य नाम केवल अवान्तर-व्यङ्ग्य की गौणता की दृष्टि से दिया है। इसमें एक मध्यवर्ती व्यङ्ग्य वाच्य का उपस्कारक होने के कारण गौण हो जाता है, वाच्य प्रधान होता है। अन्तत: इस काव्यविधा का पर्यवसान भी रसध्वनि में ही होता है। ध्वनि का निष्यन्द रूप यह काव्य अत्यन्त रमणीय एवं महाकवियों की रचना का उत्तम विषय होता है फिर भी विचारकों द्वारा इस काव्य-भेद को मध्यम-संज्ञा प्रदान करके उपेक्षा का व्यवहार किया गया है। अत: प्रस्तुत ग्रन्थ में गुणीभूतव्यङ्ग्य नामक काव्यविधा के सिद्धान्त एवं स्वरूप को प्रकाशित करने के अनन्तर बृहत्त्रयी संज्ञक महाकाव्यों-किरातार्जुनीयम्, शिशुपालवधम् एवं नैषधीयचरितम् में गुणीभूतव्यङ्ग्य के सुन्दर स्थलों पर प्रकाश डालकर इस काव्यविधा के महत्त्व को प्रदर्शित किया गया है। काव्यसुधी जनों के समक्ष यह ग्रन्थ अपने गुण-दोषों के साथ प्रस्तुत है।