Reetikalin Veer Kavyon Ka Sanskritik Adhyayan / रीतिकालीन वीर काव्यों का सांस्कृतिक अध्ययन
Author
: Shiv Narain Singh
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 1986
ISBN
: 9VPRVKKSAH
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 240 Pages, Biblio., Size : Demy i.e. 22.5 x 14 Cm.

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भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में सौन्दर्य बोधात्मक वृत्ति का बहुत अधिक महत्व है। यही वृत्ति काव्य और कलाओं में रस के रुप में अभिव्यक्त होती है। भारतीय काव्यशास्त्रियों ने नौ रसों में वीररस को बहुत अधिक महत्व दिया है। यद्यपि आज के युग में वीररस के काव्यों का प्रचलन समाप्त हो गया है, किन्तु मध्यकाल तक हिन्दी में जो कावव्य लिखे जाते रहे उनमें वीररस के काव्यों की एक सुदृढ़ परम्परा थी। डॉ० शिवनारायण ङ्क्षसह ने इस परम्परा की ऐतिहासिक और शास्त्रीय विवेचना करके जो शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत किया है वह हिन्दी साहित्य में अपने ढंग का अकेला ग्रन्थ है। जिस तरह से इतिहास के क्षेत्र में उक्त मध्यकाल का इतिहास अत्यन्त उलझा हुऔ और पेचीदा है उसी तरह हिन्दी साहित्य के इतिहास में भी उक्त मध्यकाल अथवा रीतिकाल उलझा हुआ और बहुत सीमा तक उपेक्षित रहा है उसे प्राय: शृंगारिक और दरबारी साहित्य का काल कहकर टाल दिया जाता रहा है। डॉ० शिवनारायण ङ्क्षसह ने इसी उपेक्षित काल की एक काव्यप्रवृत्ति का गहराई से विश्लेषण किया है। यह प्रस्तुत ग्रन्थ हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज मान जायेगा। अत: उक्त मध्यकाल केसाहित्यिक इतिहास के अध्ययन के लिए इस ग्रन्थ की अनिवार्यता स्वत: सिद्ध है।