Sabad Shilpi : Dr. Shukdeo Singh / सबद शिल्पी : डॉ० शुकदेव सिंह
Author
: Bhagvanti Singh
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Biographies / Autobiographies
Publication Year
: 2009
ISBN
: 9788171247411
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxiv + 476 pages; 32 Plates; Size : Demy i.e. 22.5

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कबीर, रैदास, कीनाराम और गोरखनाथ को लेकर सारी दुनिया में अपनी नयी व्याख्याओं और नये प्रतिमानों की हलचल बन चुके 'सबद शिल्पी : डॉ० शुकदेव ङ्क्षसहÓ के इस स्मृति-ग्रंथ के प्रारम्भ में पूज्य गुरुपद सम्भव रामजी और षष्ठपीठाधीश्वर गोस्वामी श्री श्याममनोहरजी महाराज के आशीर्वचन हैं। लोकसभा, अध्यक्ष मीरा कुमार (श्रीमती) द्वारा डॉ० शुकदेव ङ्क्षसह का रविदास के प्रति समर्पण और रविदास मंदिर की दीवारों पर उनके द्वारा शोधित सभी धर्मों के संतों की अंकित वाणियों की चर्चा है। डॉ० रामप्रताप ङ्क्षसह (भू० वाइसचान्सलर) और डॉ० बी०एम० शुक्लाजी (भू० वाइसचान्सलर) के कुछ भावुक क्षणों की स्मृतियाँ और आशीर्वाद है। काशी नरेश डॉ० अनन्त नारायण ङ्क्षसह जी का इस स्मृति-ग्रंथ प्रकाशन के लिए मंगल कामना और पुण्य-स्मरण है। इस पुस्तक में पाँच खण्ड हैं। प्रथम खंड के प्रारम्भ में संत विवेकदास आचार्य ने अपने बाल्यकाल से लेकर उम्र के तीसरे पड़ाव तक डॉ० शुकदेव ङ्क्षसह के सान्निध्य में कबीर और कबीरचौरा मठ को लेकर शोध कार्य किया, इसका वर्णन है। डॉ० शुकदेव ङ्क्षसह ने कैसे कबीर को अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर स्थापित किया इसके अनेक सोपानों और उस पर दोनों के बढ़ते हुए कदम के अनुभवों का वर्णन है। गुरु रामदरश मिश्र जी का शिष्य के प्रति अनेक भावुक पलों का संयोजन है। वे लिखते हैं, ''.......उनके होने की गूँज मेरे पूरे घर में थी। अत: उनके जाने की अवसन्नता ने पूरे घर को अपनी लपेट में ले लिया।....ÓÓ शुकदेवजी के वैदुष्य के सम्बन्ध में मिश्रजी बेहिचक कहते हैं, ''.......उनका भाषा-पथ प्राध्यापकीय भाषा-पथ से काफी भिन्न था। उनकी भाषा शैली में अद्भुत वक्रता और व्यंग्यात्मकता होती थी... शुकदेव ङ्क्षसह हमारे समय की मेधा कहे जा सकते हैं।...जो हो शुकदेवजी जंग छेड़े हुए थे। किसी न किसी माध्यम से वे महाबलियों को ललकारते रहते थे और उनके चेले चाटियों की गालियाँ खा-खाकर मुस्कराते रहते थे।.......ÓÓ अनेक पाश्चात्य आचार्यों ने अपने शोधकार्य के मध्य अपने व्यक्तिगत अनुभवों का भावात्मक वर्णन किया है। बनारस की संस्कृति का पर्याय बन चुके राजवैद्य पंडित शिवकुमार शास्त्रीजी अत्यन्त आत्मीय अलग प्रकार की शैली में डॉ० शुकदेव ङ्क्षसह के सांस्कृतिक व्यक्तित्व को आलोकित करते हैं- ''दीवार पर सामने व्यक्ति-चित्र से झाँकते शुकदेवजी...बरसै कम्बल भीजै पानी...विरागी कबीर के कक्ष में रागों के पुराने चित्रों का संग्रह टँगा है।ÓÓ डॉ० अवधेश्वर अरुण और डॉ० महेन्द्रनाथ राय के अपने-अपने विभाग की परम्परागत अद्भुत स्मृतियाँ हैं। अध्यक्षद्वय के द्वारा शुकदेवजी निॢमत नवीन मौलिक शब्दों, व्यंग्य, विनोद और अनुसंधान का स्मरण है। सुप्रसिद्ध महिला कथाकारों की मर्माहत कर देने वाली भावुक स्मृतियाँ हैं। धरोहर खण्ड-2 में 'सबद शिल्पीÓ शुकदेव ङ्क्षसह की रचनाओं के थोड़े-थोड़े अंश हैं। कुछ अपनी, कुछ उनकी, कुछ मानस की बातें है। खण्ड 3, 4, 5 में क्रमश: 74 वर्ष की वय तक शुकदेव ङ्क्षसह के साहित्यकार मित्रों की कुछ 'पातीÓ और विभिन्न मंचों पर आसीन होकर उन्होंने जो प्रतिष्ठा प्राप्त की उनकी कुछ प्रशस्ति, थोड़े में 'चित्रावलीÓ का प्रत्यक्ष कीॢत दर्शन है। साहित्य, कला एवं अध्यात्म के अद्भुत एवं विलक्षण 'समाहारÓ डॉ० शुकदेव ङ्क्षसह का कृतित्व उनके व्यक्तित्व से भी बड़ा था। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की एक बानगी प्रस्तुत करने का ङ्क्षकचित प्रयास है यह स्मृति ग्रन्थ!