Bharatiya Sangeet Ka Itihas / भारतीय संगीत का इतिहास
Author
: Thakur Jaideva Singh
Prem Lata Sharma
Prem Lata Sharma
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Music, Dance, Natyashastra etc.
Publication Year
: 2016, 3rd Edition
ISBN
: 9789351461531
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xx + 416 Pages + 9 Plates, Index, Biblio, Size : Demy 22.5 x 14.5 Cm
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किसी भी संगीत का इतिहास अन्ïय कलाओं या विद्याओं के इतिहास की अपेक्षा कहीं अधिक अगम्ïय होता है। इसका कारण यही है कि संगीत अपने कोई भी प्रत्ïयक्ष अवशेष काल के वक्ष पर नहीं छोड़ जाता। संगीत का वर्णन, उसके लक्षण का विचार-विमर्श या उसके प्रयोग के सन्ïदर्भ—ये सब उपलब्ध हो सकते हैं, किन्ïतु स्ïवयं संगीत का श्रव्ïय रूप तो क्षणजीवी ही होता है। उसे पुन: प्रस्ïतुत करने के लिए सुरक्षित रखने के यान्ïित्रक उपकरण आज से प्राय: सौ वर्ष से कुछ अधिक पूर्व ही उपलब्ध होने लगे हैं। मूॢत्तकला, चित्रकला, स्थापत्ïय, साहित्ïय आदि की स्थिति ऐसी नहीं है, क्ïयोंकि इनका प्रत्ïयक्ष रूप सुरक्षित रहता है। नृत्ïय को भी चित्र और मूॢत्त के माध्ïयम से आंशिक रूप से अंकित किया जा सकता है। किन्ïतु गेय का अंकन उस कोटि का नहीं होता क्ïयोंकि वह श्रव्ïय का प्रत्ïयक्ष रूप सुरक्षित नहीं रख सकता।
भारतीय संगीत में इतिहास के अध्ïययन की स्थिति और भी बीहड़ है, क्ïयोंकि उसका बहुत कम अंश स्ïवरलिपि में अंकित है और उसमें अनेकानेक धाराओं का मिश्रण दीर्घकाल से होता रहा है। इसलिए चाहे-अनचाहे ऐतिहासिक अध्ïययन का मुख्य आधार 'लक्षणÓ-ग्रन्थ ही बन जाते हैं। भूतकाल के 'लक्ष्ïयÓ से सीधा सम्पर्क असम्भव ही होता है। प्रस्ïतुत ग्रन्थ में वैदिक संगीत का वर्णन 131 पृष्ïठों में हुआ है, जो कि पूरे ग्रन्थ का एक तृतीयांश है। यह वर्णन अनेक लक्षणगत प्रमाणों के साथ-साथ आज प्रचलित वैदिक पाठ-पद्धति और गान-पद्धति को लेते हुए प्रस्ïतुत किया गया है। वैदिक धारा में पाठ और गान का स्ïवरूप बहुत-कुछ अक्षुण्ïण रह पाया है, इसलिये उस प्रसंग में लक्षण और लक्ष्ïय को साथ-साथ ले कर चलना सम्भव है। लेखक ने इस सुविधा का भरपूर उपयोग किया है और सामगान को आधुनिक स्ïवरलिपि में उदाहरण के तौर पर रखा है।
वैदिकेतर अर्थातï् लौकिक संगीत की स्थिति भिन्ïन है, क्ïयोंकि उसमें लक्षण तो किसी सीमा तक सुरक्षित रह पाया है, किन्ïतु लक्ष्ïय मौखिक परम्ïपरा में से होता हुआ अनेक परिवर्तनों का भाजन बना है। इन परिवर्तनों का लेखा-जोखा करना और उस के साथ सातत्ïय की धारा का आकलन अत्ïयन्ïत कठिन कार्य है, जो किसी एक अध्ïययन में सम्ïपन्ïन नहीं हो सकता।
प्रस्ïतुत ग्रन्थ में वैदिक धारा के निरूपण के पश्ïचातï् रामायण, महाभारत, हरिवंश, पुराण, पाणिनीय अष्ïटाध्ïयायी, बौद्ध वाङï्मय एवं जैन वाङï्मय में प्राप्ïत संगीत-सम्ïबन्धी उल्ïलेखों का मूल्ïयवानï् संकलन है। ये सब ऐतिहासिक अध्ïययन के आधार हैं। बौद्ध धारा के प्रसंग में भरहुत, साँची और नागार्जुनकोंडा में उकेरे हुए वाद्य और नृत्ïय के दृश्ïयों पर भी विस्ïतार किया गया है। पुरातात्त्ïिवक अवशेषों पर कुछ विचार द्वितीय अध्ïयाय में सिन्धु घाटी-सभ्यता के प्रसंग में भी किया गया है। सिन्धु-सभ्यता प्राग्वैदिक थी या वैदिक? इस प्रश्ïन को लेखक ने उठाया तो है किन्ïतु कोई निर्णय नहीं लिया है। जैन वाङï्मय पर विचार के बाद संगीतशास्ïत्र की कुछ प्राचीन विभूतियों पर एक छोटा अध्ïयाय है, इसमें अधिकांश पौराणिक नामों का संग्रह है। उसके बाद का अध्ïयाय नाट्यशास्ïत्र के पूर्वकाल पर कुछ विचार प्रस्ïतुत करता है। उपान्ïत्ïय अध्ïयाय में नाट्यशास्ïत्र के स्ïवरूप पर विचार है तथा संस्ïकरणों एवं टीकाकारों का विवरण है। अन्ïितम अष्ïटादश अध्ïयाय में, नाट्यशास्ïत्र में प्राप्ïत संगीत-विचार का आकलन है। यह उल्ïलेखनीय है कि नाट्यशास्ïत्र के केवल अ_ïाइसवें अध्ïयाय पर ही यहाँ विचार हो पाया है, जिसमें कि स्ïवर, श्रुति, ग्राम, मूच्र्छना, तान, साधारण और जाति का समावेश है। जातियों के विनियोग, वर्ण, अलंकार, वीणा के वादन-प्रकार, ताल, ध्रुवाएँ, अवनद्ध वाद्य—इतने विषय नाट्यशास्त्र के उन्ïतीसवें से लेकर चौंतीसवें अध्ïयाय तक वॢणत हैं, इन पर कोई विचार नहीं हो पाया है। ऐसा लगता है कि लेखक इस ग्रन्थ को पूर्ण नहीं कर पाये हैं, और नाट्यशास्ïत्र के अ_ïाइसवें अध्ïयाय का विवरण दे कर ग्रन्थ का विराम हो गया है। इसलिए परिवर्तन के आकलन का प्रसंग ही उपस्थित नहीं हो पाया है। कुल मिला कर प्राचीन काल के वाङï्मय में प्राप्ïत संगीत-स?ïबन्धी उल्ïलेखों का उत्तम संकलन यहाँ प्राप्ïत होता है। निष्ïकर्षों का कार्य भावी अध्ïयेताओं का दायित्ïव है।
'वैदिक कालÓ 'इतिहास कालÓ जैसी संज्ञाओं से काल की सीधी रेखा की अवधारणा ध्ïवनित होती है। यह अवधारणा पश्ïिचम की देन है, जो कि हम लोगों के चित्त में गहरी पैठ गई है। वास्ïतव में इस देश में अधिकांश घटनाक्रम को सीधी रेखा में रख कर देखना स?ïभव नहीं है। बहुत-कुछ एक साथ घटित होता रहा है और बहुत-कुछ में एकाधिक घटनाओं की परस्ïपर व्ïयाप्ïित मिलती है। अस्ïतु।