Bharatiya Sangeet Ka Itihas [PB] / भारतीय संगीत का इतिहास (पेपर बैक)
Author
: Thakur Jaideva Singh
Prem Lata Sharma
Prem Lata Sharma
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Music, Dance, Natyashastra etc.
Publication Year
: 2022, 4th Edition
ISBN
: 9789351461548
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xx + 416 Pages + 9 Plates, Index, Biblio, Size : Demy 21.5 x 14 Cm
MRP ₹ 450
Discount 15%
Offer Price ₹ 383
किसी भी संगीत का इतिहास अन्य कलाओं या विद्याओं के इतिहास की अपेक्षा कहीं अधिक अगम्य होता है। इसका कारण यही है कि संगीत अपने कोई भी प्रत्यक्ष अवशेष काल के वक्ष पर नहीं छोड़ जाता। संगीत का वर्णन, उसके लक्षण का विचार-विमर्श या उसके प्रयोग के सन्दर्भ—ये सब उपलब्ध हो सकते हैं, किन्तु स्वयं संगीत का श्रव्य रूप तो क्षणजीवी ही होता है। उसे पुन: प्रस्तुत करने के लिए सुरक्षित रखने के यांïित्रक उपकरण आज से प्राय: सौ वर्ष से कुछ अधिक पूर्व ही उपलब्ध होने लगे हैं। मूर्तिकला, चित्रकला, स्थापत्य, साहित्य आदि की स्थिति ऐसी नहीं है, क्योंकि इनका प्रत्यक्ष रूप सुरक्षित रहता है। नृत्य को भी चित्र और मूर्ति के माध्यम से आंशिक रूप से अंकित किया जा सकता है। किन्तु गेय का अंकन उस कोटि का नहीं होता क्योंकि वह श्रव्य का प्रत्यक्ष रूप सुरक्षित नहीं रख सकता।
भारतीय संगीत में इतिहास के अध्ययन की स्थिति और भी बीहड़ है, क्योंकि उसका बहुत कम अंश स्वरलिपि में अंकित है और उसमें अनेकानेक धाराओं का मिश्रण दीर्घकाल से होता रहा है। इसलिए चाहे-अनचाहे ऐतिहासिक अध्ययन का मुख्य आधार 'लक्षण-ग्रन्थ ही बन जाते हैं। भूतकाल के 'लक्ष्य' से सीधा सम्पर्क असम्भव ही होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में वैदिक संगीत का वर्णन 131 पृष्ठों में हुआ है, जो कि पूरे ग्रन्थ का एक तृतीयांश है। यह वर्णन अनेक लक्षणगत प्रमाणों के साथ-साथ आज प्रचलित वैदिक पाठ-पद्धति और गान-पद्धति को लेते हुए प्रस्तुत किया गया है। वैदिक धारा में पाठ और गान का स्वरूप बहुत-कुछ अक्षुण्ण रह पाया है, इसलिये उस प्रसंग में लक्षण और लक्ष्य को साथ-साथ ले कर चलना सम्भव है। लेखक ने इस सुविधा का भरपूर उपयोग किया है और सामगान को आधुनिक स्वरलिपि में उदाहरण के तौर पर रखा है।
वैदिकेतर अर्थात् लौकिक संगीत की स्थिति भिन्न है, कयोंकि उसमें लक्षण तो किसी सीमा तक सुरक्षित रह पाया है, किन्तु लक्ष्य मौखिक परम्परा में से होता हुआ अनेक परिवर्तनों का भाजन बना है। इन परिवर्तनों का लेखा-जोखा करना और उस के साथ सातत्य की धारा का आकलन अत्यन्त कठिन कार्य है, जो किसी एक अध्ययन में सम्पन्न नहीं हो सकता।
प्रस्तुत ग्रन्थ में वैदिक धारा के निरूपण के पश्चातï रामायण, महाभारत, हरिवंश, पुराण, पाणिनीय अष्टाध्यायी, बौद्ध वाङमय एवं जैन वाङमय में प्राप्त संगीत-सम्बन्धी उल्लेखों का मूल्यवान् संकलन है। ये सब ऐतिहासिक अध्ययन के आधार हैं। बौद्ध धारा के प्रसंग में भरहुत, साँची और नागार्जुनकोंडा में उकेरे हुए वाद्य और नृत्य के दृश्यों पर भी विस्तार किया गया है। पुरातात्त्ïिवक अवशेषों पर कुछ विचार द्वितीय अध्याय में सिन्धु घाटी-सभ्यता के प्रसंग में भी किया गया है। सिन्धु-सभ्यता प्राग्वैदिक थी या वैदिक? इस प्रश्न को लेखक ने उठाया तो है किन्तु कोई निर्णय नहीं लिया है। जैन वाङमय पर विचार के बाद संगीतशास्त्र की कुछ प्राचीन विभूतियों पर एक छोटा अध्याय है, इसमें अधिकांश पौराणिक नामों का संग्रह है। उसके बाद का अध्याय नाट्यशास्ïत्र के पूर्वकाल पर कुछ विचार प्रस्तुत करता है। उपान्त्य अध्याय में नाट्यशास्त्र के स्वरूप पर विचार है तथा संस्करणों एवं टीकाकारों का विवरण है। अन्तिम अष्टादश अध्याय में, नाट्यशास्त्र में प्राप्त संगीत-विचार का आकलन है। यह उल्लेखनीय है कि नाट्यशास्त्र के केवल अ_इसवें अध्याय पर ही यहाँ विचार हो पाया है, जिसमें कि स्वर, श्रुति, ग्राम, मूच्र्छना, तान, साधारण और जाति का समावेश है। जातियों के विनियोग, वर्ण, अलंकार, वीणा के वादन-प्रकार, ताल, ध्रुवाएँ, अवनद्ध वाद्य—इतने विषय नाट्यशास्त्र के उन्तीसवें से लेकर चौंतीसवें अध्याय तक वर्णित हैं, इन पर कोई विचार नहीं हो पाया है। ऐसा लगता है कि लेखक इस ग्रन्थ को पूर्ण नहीं कर पाये हैं, और नाट्यशास्त्र के अ_ïाइसवें अध्याय का विवरण दे कर ग्रन्थ का विराम हो गया है। इसलिए परिवर्तन के आकलन का प्रसंग ही उपस्थित नहीं हो पाया है। कुल मिला कर प्राचीन काल के वाङमय में प्राप्त संगीत-सम्बन्धी उल्लेखों का उत्तम संकलन यहाँ प्राप्त होता है। निष्कर्षों का कार्य भावी अध्येताओं का दायित्व है।
'वैदिक काल' 'इतिहास काल' जैसी संज्ञाओं से काल की सीधी रेखा की अवधारणा ध्वनित होती है। यह अवधारणा पश्चिम की देन है, जो कि हम लोगों के चित्त में गहरी पैठ गई है। वास्तव में इस देश में अधिकांश घटनाक्रम को सीधी रेखा में रख कर देखना सम्भव नहीं है। बहुत-कुछ एक साथ घटित होता रहा है और बहुत-कुछ में एकाधिक घटनाओं की परस्पर व्याप्ïित मिलती है। अस्तु।