Bharatiya Va Pashchatya Kavyashastra tatha Hindi Alochana / भारतीय व पाश्चात्य काव्यशास्त्र तथा हिन्दी-आलोचना
Author
: Ramchandra Tiwari
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2021
ISBN
: 9788171247646
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: viii + 300 Pages; Size : Demy i.e. 21 x 13 Cm.

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यह कृति विश्वविद्यालयों के उच्च कक्षा के छात्रों को दृष्टि में रखकर लिखी गई है। इसमें तीन खंड हैं। प्रथम खण्ड में भारतीय काव्यशास्त्र की रूप-रेखा प्रस्तुत की गई है। दूसरे खण्ड में पाश्चात्य काव्यशास्त्र का सामान्य परिचय दिया गया है। इस क्रम में उस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है जिसमें आलोचना की विशिष्ट प्रवृत्ति या आलोचक-विशेष के व्यक्तित्व का विकास हुआ है। तीसरे खण्ड में हिन्दी-आलोचना के विकास को संक्षेप में प्रस्तुत करने के बाद प्रमुख आलोचकों के आलोचक-व्यक्तित्व का विश्लेषण किया गया है। वस्तुत: हिन्दी-आलोचना का विकास भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र के संश्लेष से हुआ है। संश्लेषण की प्रक्रिया भारतेन्दु-युग में ही आरम्भ हो गई थी, आगे चलकर यह हिन्दी-आलोचना की नियति बन गई। प्लेटो, अरस्तू, होरेस, लोंगिनुस, कोलरिज, जानसन, मैथ्यू आर्नल्ड, क्रोचे रिचर्डस, इलियट आदि की चर्चा किए बिना हिन्दी-आलोचना अधूरी समझी जाने लगी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अवश्य यह चाहा था कि भारतीय काव्यशास्त्र को महत्त्व देते हुए उसके आलोक में पाश्चात्य काव्य-चिन्तन को देखा-परखा जाय। उनके बाद डॉ० नगेन्द्र ने इस कार्य को आगे बढ़ाने की कोशिश की किन्तु यह स?भव नहीं हुआ और हुआ कि भारतीय-काव्य-चिन्तन अप्रासंगिक घोषित कर दिया गया और अब स्थिति यह है कि हिन्दी-आलोचना, पाश्चात्य-आलोचना (मुख्यत: अमेरिकी आलोचना) की अनुगामिनी बनकर रह गई है। आज हिन्दी का विद्यार्थी बिम्ब, प्रतीक, रूपवाद, अनुभूति की प्रामाणिकता, एम्बिग्यूइटि, द्वन्द्व, तनाव, विसंगति, विडम्बना, फैंटेसी, मिथक, शैली-विज्ञान, संरचनावाद, आधुनिकतावाद, यथार्थवाद, विचारधारा, संस्कृतिवाद, बहुलतावाद, परम्परावाद आदि अनेक पारिभाषिक शब्दों से आतंकित है। अब विरेचन-सिद्धान्त और रसवाद, वक्कोक्ति और अभिव्यंजना, निर्वैक्तिकता और साधारणीकरण, वस्तुनिष्ठ समीकरण और विभावन-व्यापार, स्वच्छन्दतावाद और छायावाद आदि की तुलना इतिहास की वस्तु बन गई है। प्रस्तुत कृति में काव्य-सिद्धान्तों और पारिभाषिक शब्दों को उनके मूल सन्दर्भ के साथ स्पष्ट करने की कोशिश की गई है। प्रयत्न किया गया है कि छात्रों के मन से सिद्धान्तों और वादों का आतंक दूर हो जाय।