Khili Hui Dhupa Mein / खिली हुई धूप में (काव्य समग्र)
Author
: Viveki Rai
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Hindi Poetical Works / Ghazal etc.
Publication Year
: 2010
ISBN
: 9788171247394
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xvi + 336 Pages, Size : Demy i.e. 22 x 14 cm.

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प्र?यात साहित्यकार डॉ० विवेकी राय के कुल पाँच कविता-संग्रहों का समग्र रूप में प्रकाशन एक बहुत बड़ी कमी की पूॢत का प्रयास है। गँवई जीवन के कुशल प्रस्तोता डॉ० राय ने अपनी कविताओं के माध्यम से स्वातंत्र्योत्तर भारतीय ग्राम-जीवन के क्षण-क्षण बदलते स्वरूप को विभिन्न कोणों से उभारा है। आपकी कविताओं में 'आँखिन देखिÓ की अभिव्यक्ति हुई है। यही कारण है कि ये कविताएँ यथार्थ के ऊबड़-खाबड़ व खुरदुरे धरातल पर खरी-खरी कहने का साहस रखती हैं। अनुभूतियों की गहनता और अभिव्यक्ति की ताजगी इन कविताओं को मूल्यवान बनाती है। मनमोहक प्रकृति-चित्रांकन के बीच प्रतीक योजना हो या बि?ब विधान, सहजता हो या सरसता, सब कुछ आश्वस्तकारी व अनुरंजक है। वे कथाकार और निबन्धकार के रूप में हिन्दी साहित्य में अपनी एक प्रतिष्ठ पहचान बना चुके हैं। इस समग्र से उनके समृद्ध कवि-रूप से भी हिन्दी जगत यथावत रूप में परिचित हो सकेगा। 'यह जो है गायत्रीÓ के पद्य मुझे पसन्द आये। इनमें बड़ा सुन्दर प्रवाह है और भावनाओं में बड़ी सुन्दर आशावादिता। आपने प्रकृति के उपकरणों का भी बड़ा अच्छा प्रयोग किया है। मुझे प्रतीत होता है कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के स्वच्छन्दतावादी कवित्तों के बाद इस प्रकार के कवित्त मुझे पहली बार देखने को मिले हैं। —नन्ददुलारे बाजपेयी श्री विवेकी राय जी की काव्य-साधना का प्रतीक 'अर्गलाÓ की रचनाएँ पढऩे का अवसर मुझे मिला है। 'अर्गलाÓ की कविताओं में भावुक कवि के प्राणों का निखार है। उनके गीतों में उसके हृदय की समवेदना की झंकारें हैं। गीत-प्रधान रचनाओं की भाषा अत्यन्त मधुर, प्रवाहपूर्ण तथा कवि के हृदय की भावनाओं के सौन्दर्य से ओत-प्रोत है। प्रगीतों के अतिरिक्त इस संग्रह में अन्य भी रचनाएँ हैं, जिनमें कवि ने युग जागरण की चेतना को सफलतापूर्वक वाणी दी है। कवि के हृदय को नवयुग-प्रभात की किरणों ने स्पर्श किया और उसके छन्दों में उनका ओज तथा आशा उल्लासप्रद संगीत फूट पड़ा है। यत्र-तत्र युग संघर्ष की निराशा तथा विषाद ने भी उसके हृदय को उद्वेलित किया है। इसके साथ ही ग्राम-जीवन का वातावरण तथा वहाँ की प्राकृतिक मनोहरता को भी 'अर्गलाÓ की पंक्तियों में अत्यन्त स्वाभाविक अभिव्यक्ति मिली है। —सुमित्रानंदन पंत