Yashapal Ke Upanyason Mein Samajik Yathartha / यशपाल के उपन्यासों में सामाजिक यथार्थ
Author
: Ritu Varshney
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2010
ISBN
: 9788171247554
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xvi + 240 Pages, Biblio, Appends., Size : Demy i.e

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''...साहित्य न केवल साहित्यिक इतिहास को यथार्थ की चेतना से अनुप्रमाणित करता है, बल्कि सामाजिक एवं राजनीतिक सन्दर्भों के प्रति जाग्रत करते हुए देश के विकास का पथ-प्रदर्शन भी करता है। इस दृष्टि से यह सत्य है कि साहित्य-रचना राजनीति के आगे-आगे चलने वाली मशाल है, जिसमें उसका स?पूर्ण युग अपने समस्त अन्तॢवरोधों के साथ देखा जा सकता है। प्रत्येक युग में समाज में व्याप्त दीनावस्था, आॢथक-विषमता, धाॢमक एवं चारित्रिक पतन, भ्रष्टाचार, व्यभिचार और राष्ट्रीय समस्याओं को दृष्टि में रखकर ही रचनायें प्रकाशित की गईं। फलत: साहित्य में देशवासियों की स्थानीय समस्या, उनके विचार तथा उनकी भावना की पूर्ण अभिव्यक्ति हुई। उपन्यासकार मनोरंजक रचना के साथ ही साथ जनता की सामाजिक, राजनीतिक तथा आॢथक मनोदृष्टि एवं परिस्थिति की झलक दिखाने लगे। उपन्यास अपने समय की घटित समस्याओं को इतना जीवन्त रूप प्रदान करता है कि वह युग साकार होकर स्वत: ही दृष्टिगत हो जाता है। साहित्यकारों ने अपने उपन्यासों के माध्यम से पीडि़त, दुर्बल, असहाय लोगों के प्रति जन-मानस में नव चेतना उत्पन्न की और उसको अपनी-अपनी विधि से व्यक्त किया। जो दलित हैं, पीडि़त हैं, शोषित हैं, वंचित हैं, चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष या समूह, उसकी हिमायत और वकालत करना ही उसका फर्ज है। उसकी अदालत समाज है और इसी अदालत के सामने रचनाकार अपना इस्तगासा प्रस्तुत करता है....ÓÓ