Tattvajigyansa / तत्त्वजिज्ञासा
Author
: Gopinath Kaviraj
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Adhyatmik (Spiritual & Religious) Literature
Publication Year
: 2014, 2nd Edition
ISBN
: 9788171247707
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: iv + 96 Pages, Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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प्रस्तुत ग्रन्थ जिज्ञासुगण की जिज्ञासा तथा उसका समाधान रूप है। अगम पथ पर अग्रसर हो रहे साधक के अन्तरतम में अनेक जिज्ञासा का उदय होना स्वाभाविक है। यह जिज्ञासा शंका नहीं है। शंका की पृष्ठभूमि में विश्वास का तत्वत: अभाव होता है। इसी प्रकार प्रश्न का उदय तर्कबुद्धि के कारण होता है। जिज्ञासा में न तो शंकाजनित विश्वास की शिथिलता रहती है, न प्रश्नों की पृष्ठभूमि में स्थित तर्क बुद्धि के लिए ही वहाँ कोई स्थान है। जिज्ञासा शुद्ध विश्वास तथा आश्चर्य वृत्ति पर आधारित है। अगम तत्व को कोई आश्चर्य से देखता है, आश्चर्य से सुनता है और कोई उसे देख-सुन कर भी नहीं समझ पाता। ऐसी स्थिति में जिज्ञासा का उदय होता है। जिज्ञासु सत्तर्क का आश्रय लेकर श्रद्धापूर्ण हृदय से पूर्ण विश्वास के साथ नतशिर होकर प्रातिभ प्रत्यक्ष ज्ञानसम्पन्न महापुरुष के समक्ष अपनी जिज्ञासा प्रस्तुत करता है। यही 'तत्वजिज्ञासा' की तथा समाधान के उपक्रम की रूपरेखा है। प्रस्तुत ग्रन्थ में जिन-जिन की जिज्ञासा प्रस्तुत है, उनका नामोल्लेख नहीं किया जा रहा है। उसका कोई प्रयोजन प्रतीत नहीं होता। वे सब प्रकृत जिज्ञासु रूप साधक थे। उनका स्थूल शरीर तथा उससे जुड़ा उनका नाम, यह उन सबका वास्तविक परिचय नहीं है। उनका वास्तविक परिचय है उनकी जिज्ञासा, उनकी गम्भीर प्रतिभा तथा उनकी ग्रहण-क्षमता। इस त्रिवेणी के सम्मिलन से ही यथार्थ जिज्ञासा का उदय तथा उसका समाधान साधित होता है। संक्षेप में गोस्वामीजी के शब्दों में ''श्रोता वक्ता ज्ञाननिधि' की उक्ति यहाँ अक्षरश: प्रतिफलित होती है। वास्तव में जाडयतम के उच्छिन्न हो जाने पर जिस जिज्ञासा का उदय होता है, वही है यथार्थ जिज्ञासा। ऐसी जिज्ञासा का उदय हो जाने पर पारमेश्वरी कृपा से उसके उचित समाधान के माध्यम रूप महापुरुष का संश्रयत्व स्वत: प्राप्त हो जाता है।