Godan [PB] / गोदान (ग्रामीण समाज एवं संस्कृति का संवेदनात्मक एवं महाकाव्यात्मक उपन्यास)
Author
: Premchand
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: Hindi Novels / Fiction / Stories
Publication Year
: 2023
ISBN
: 9788189498443
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xx + 292 Pages; Size : Demy i.e. 21.5 x 13.5 Cm.

MRP ₹ 175

Discount 20%

Offer Price ₹ 140

हिन्दी कथा साहित्य में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले कथाकारों में आज भी संभवत: प्रेमचंद ही हैं। आज समस्याएँ बदल गयी हैं, चित्रित परिवेश पुराना हो गया है, मूल्यों में ज़मीन-आसमान का अंतर आ गया है, वॢणत गाँव और शहरों के वातावरण में आमूलचूल परिवर्तन हो चुका है, लेकिन तब भी प्रेमचंद के कथा-साहित्य की 'पठनीयता' 'लोकप्रियता' में कोई विशेष अन्तर नहीं आया है। प्रेमचंद 'पठनीयता' के साथ-साथ 'स्तरीयता' का निर्वाह करने में समर्थ सिद्ध होते हैं। वे मानव-स्वभाव के बहुत गहरे अध्येता हैं। इसका एक बड़ा प्रमाण यही है कि मानव-स्वभाव के गहन विवेचन के क्रम में जितनी सूक्तियाँ प्रेमचंद कथा-साहित्य में देते चलते हैं, उतनी शायद ही कहीं और मिलें। व्यक्ति का यह गहन परिचय और विश्लेषण सामाजिक संघर्षों की चक्की में पड़ कर उनके कथा-साहित्य को वह 'दीप्ति' दे देता है जो इतने वर्ष बीत जाने पर भी धूमिल नहीं पड़ी है। उन्होंने 'गोदान' में 'ग्रामीण परिवेश' के साथ-साथ 'शहरी परिवेश' को भी अपने कथानक में शामिल किया। इसमें एक तरफ तो उन्होंने होरी एवं अन्य पात्रों के माध्यम से ग्रामीण परिवेश को चित्रित किया जहाँ किसान कई चक्कियों में पिस रहा है, दूसरी तरफ शहरी परिवेश को भी समेटा ताकि भारतीय समाज का एक मुकममल चित्र सामने आ सके। प्रेमचंद की दृष्टि एकांगी नहीं थी। 'गोदान' को कृषक-जीवन का महाकाव्य भी कहा गया है। ज़ाहिर है कि यह कृषक-जीवन मूलत: होरी के माध्यम से ही सामने आता है। प्रेमचंद ने उसके चरित्र में विनम्रता, दया, धर्मभीरुता, परलोक का डर एवं ब्राह्मïण के कोप के आतंक के साथ-साथ कृषक सुलभ व्यवहारकुशलता/निर्लपता इस तरीके से अनुस्यूत की है कि भारतीय किसान जैसे मूर्तिमान हो उठता है। प्रेमचंद 'गोदान' के ग्रामीण परिवेश में प्रचलित यौन-व्यवहार को परत-दर-परत खोलते चलते हैं। फिर वह चाहे सवर्ण समाज हो या $गैर सवर्ण समाज या हरिजन समाज। वास्तव में 'गोदान' 1936 तक के हिन्दुस्तान की महागाथा है। उपन्यास का अन्त अत्यन्त ह्दयद्रावक है। इसमें प्रेमचंद का जीवन-संचित अनुभव और उनकी कला का निखरा हुआ रूप मिलता है। उन्होंने चारों ओर से जीर्ण-शीर्ण एवं विशृंखल होते हुए समाज का सजीव चित्र प्रस्तुत किया है। कानून बदलने या थोड़े से सुधारवादी कार्यों द्वारा इस समाज का त्राण नहीं हो सकता। इसमेंं तो आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। होरी भी बहुत कुछ इसी समाज की उपज है, किन्तु सामन्तों, पूँजीवादियों, धर्म के ठेकेदारों आदि से वह कहीं महान् है क्योंकि इस समाज में इहलोक और परलोक सभी पैसेवालों का है, इसीलिए होरी संघर्ष की चक्की में पीस जाता है। वह समाज को चुनौती देकर संसार से चला जाता है। उसकी चुनौती जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के पीडि़त एवं दलित व्यक्ति की चुनौती है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास में जनवाद और सेवा-मार्ग की स्थापना भी की है। उन्होंने अपने समकालीन भारतीय जीवन का 'गोदान' में सुन्दर और विशद चित्रण किया है।