Gadya-Vidha-Chayanika (VBSPU : B.A. III Year- Secone Paper) / गद्य-विधा-चयनिका (वीर बहादुर ङ्क्षसह पूर्वांचल विश्वविद्यालय : बी.ए. तृतीय वर्ष-द्वितीय प्रश्न पत्र)

Author
: Vedprakash Upadhyay
Krishnadeo Choubey
Krishnadeo Choubey
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2013
ISBN
: 9789351460329
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxiv + 76 Pages; Size : Demy i.e. 21.5 x 13.5 Cm.
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भारत का अतीत अत्यन्त गौरवशाली रहा है। यह अतीत उसे विश्व परिदृश्य पर सर्वोच्च स्थान पर आसीन करता है। इस अतीत के अध्ययन के लिए पुरातत्त्व एक बेहद महत्त्वपूर्ण व अनिवार्य उपादान है। आदि मानव की विकसित मानव के रूप में विकास-यात्रा की कथा पुरातत्त्व द्वारा ही उद्वाचित हो सकती है। इस सुदीर्घ काल-मान में उसके आवास, भोजन, रीति-रिवाज, आमोद-प्रमोद, कृषि, पशुपालन, उद्योग-धन्धे, कला, उपकरण व औजार, अन्तिम संस्कार आदि जीवन के विविध आयामों पर प्रकाश डालने का कार्य भी पुरातत्त्व द्वारा ही किया जाता है। इस प्रकार मानव के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, धाॢमक, आॢथक आदि विविध पक्षों के साथ ही तत्कालीन पर्यावरण, प्रकृति की स्थिति और उनका मानव-जीवन में योगदान व उपादेयता की जानकारी भी पुरातत्त्व द्वारा होती है।
पुरातत्त्व द्वारा मानव-अतीत के उद्घाटन की यात्रा में सर्वेक्षण, उत्खनन, संरक्षण, परिरक्षण, प्रदर्शन, इतिहास की व्या?या व प्रस्तुति आदि विविध आयाम होते हैं जिनका प्रस्तुत पुस्तक 'भारतीय पुरातत्त्वÓ में विस्तृत वर्णन किया गया है। पुरातत्त्व क्या है, यह बताते हुए उसके विविध क्षेत्र, मानविकी और प्राकृतिक विज्ञान से उसके स?बन्ध पर भी प्रकाश डाला गया है। विश्व में पुरातत्त्व का इतिहास व विकास स?बन्धी विवरण अत्यन्त रोचक होने के साथ ही ज्ञानवद्र्धक भी है।
भारत में पुरातत्त्व का इतिहास व विकास यात्रा, पुरातात्त्विक छायांकन, विभिन्न प्रकार के पुरावशेषों के उत्खनन की भिन्न-भिन्न विधियाँ, स्तर विन्यास की पहचान व महत्त्व, पुरावशेषों तथा पुरावस्तुओं को संरक्षित व परिरक्षित करने के वैज्ञानिक तरीके और इनकी तिथि निर्धारित करने के लिए प्रयुक्त विभिन्न विधियों का अत्यन्त संयोजित व परिष्कृत वर्णन किया गया है। पारिस्थितिकी व प्रातिनूतन काल से आदि मानव का उद्भव व विकास, विश्व में पुरापाषाण काल से होते हुए भारत में पाषाण काल की यात्रा अत्यन्त रोचक व तर्क पूर्ण है। भारत में खाद्य उत्पादन और प्राक् तथा पुरा इतिहास के विषय में नवीन विचारों और मतों के साथ ही हड़प्पा, ताम्र-पाषाण, ताम्र-निधि, लौह, वृहत्पाषाण स्मारक संस्कृतियों का वर्णन भी निष्पक्ष रूप से ताॢकक और नवीनतम तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न प्रकार के मृदभाण्डों का उल्लेख इस पुस्तक को अत्यन्त समृद्ध बनाता है। प्रमुख उत्खनित स्थलों में काफी पहले से प्राप्त व उद्घाटित स्थलों के साथ ही हाल में उत्खनित खैराडीह, लहुरादेवा, नरहन, अकथा, रामनगर, अगियाबीर आदि का वर्णन पुस्तक को नवीनतम जानकारियों से पूरित करता है। हिन्दी भाषा में पुरातत्त्व स?बन्धी पुस्तकों के अभाव को यह पुस्तक सशक्त रूप में पूरा करती है। पुस्तक में वे सभी रेखाचित्र, छायाचित्र, मानचित्र दिये गये हैं जो इसके वण्र्य-विषय को स्पष्ट करते हैं, पुष्ट करते हैं और प्रमाणित करते हैं।