Arthavijnana Aur Vyakarana Darshana / अर्थविज्ञान और व्याकरण दर्शन
Author
: Padmashri Dr. Kapil Deva Dvivedi
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Grammar, Language & Linguistics
Publication Year
: 2021
ISBN
: 9789387643468
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxxvi + 368 Pages, Index, Biblio., Size : Demy i.e. 22 x 14.5 Cm.

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अर्थविज्ञान और व्याकरण दर्शन
The book deals with contribution of ancient Indian Gramarians to the study of Semantics. It is a research work, dealing with the philosophy of the Grammar. The book is devided into 9 chapters. The main topics dealt with are Wrod and Meaning, evolution of meaning. Means of determination of word meaning, Relationship between word and meaning, Power of words, word and word meaning, sentence and sentence meaning, the theory of Sphotavada. अर्थविज्ञान भाषाशास्त्र का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। भारतीय वैयाकरणों ने इसको दार्शनिक रूप दिया है। मूर्धन्य वैयाकरण पतंजलि ने महाभाष्य में और भर्तृहरि ने वाक्यपदीय ग्रन्थ में इस विषय का बहुत सूक्ष्म विवेचन किया है। भर्तृहरि का वाक्यपदीय अर्थविज्ञान का प्रौढ़ ग्रन्थ है। यह भाव-गाम्भीर्य के कारण अति-दुरूह माना जाता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में शब्द, अर्थ, शब्दार्थ-सम्बन्ध, शब्दशक्ति, पद और पदार्थ, वाक्य और वाक्यार्थ, अर्थ विकास तथा स्फोट-सिद्धान्त का सरल और सुबोध भाषा में गूढ़ार्थ स्पष्ट किया गया है। भारतीय काव्यशास्त्रियों, दार्शनिकों और वैयाकरणों के शब्दार्थ-सम्बन्ध, शब्दशक्ति और स्फोट-सिद्धान्त पर अपने मन्तव्यों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रयत्न किया गया है कि सभी साहित्यशास्त्रियों और दार्शनिकों के विचारों को उचित स्थान दिया जाय। साथ ही उनका आलोचनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया जाय। इस तुलनात्मक अध्ययन के कारण ग्रन्थ का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है। भाषा की सरलता, सुबोधता, गूढ़ार्थ का स्पष्टीकरण और तात्त्विक विवेचन ग्रन्थ की उपादेयता सिद्ध करता है। अर्थविज्ञान और व्याकरण दर्शन विषय पर यह सबसे अधिक प्रामणिक ग्रन्थ है। डॉ० द्विवेदी भाषाविज्ञान और भाषाशास्त्र के मूर्धन्य विद्वानों में एक हैं। डॉ० द्विवेदी ने इस ग्रन्थ के द्वारा अपनी शास्त्रीय सूक्ष्म दृष्टि और गाम्भीर्य चिन्तन का मूर्तरूप प्रस्तुत किया है। आशा है यह ग्रन्थ भाषाविज्ञान-प्रेमी सभी विद्वानों का उचित आदर प्राप्त करेगा।