Aatmavigyanam (Mahakavyam) / आत्मविज्ञानम् (महाकाव्यम्)
Author
: Padmashri Dr. Kapil Deva Dvivedi
Language
: Sanskrit
Book Type
: Reference Book
Category
: Sanskrit Literature
Publication Year
: 1994
ISBN
: 8185246378
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: 204 Pages: Size : Demy i.e. 22 x 14 Cm.

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आत्मविज्ञानम् (विंशति-सर्गात्मकं ब्रह्मस्वरूपं-वर्णान्वितं महाकाव्यम्) लेखक : पद्मश्री डा. कपिलदेव द्विवेदी विश्व को भारत की सर्वोत्तम देन योगसाधना एवं आत्मदर्शन है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इसका ही आश्रय लेकर अन्तर्ज्योति का दर्शन किया था और विश्व के सूक्ष्मतम पदार्थों का ज्ञान प्राप्त किया था। मोह-माया, द्वन्द्वों और अशान्ति से पीड़ित मानव के लिए यह अध्यात्म का मार्ग ही शान्ति और स्थिरता दे सकता है। वेद, उपनिषद और योगदर्शन में वर्णित इस साधना विधि को अत्यन्त सरल और सुबोध ढंग से इस महाकाव्य में निरूपित किया गया है। योगदर्शन की इस विधि को राजयोग कहा जाता है। इसमें हठयोग की दुरूह विधियों का परित्याग किया जाता है। इस विधि से प्राणायाम, मनोनिरोध और संयम का आश्रय लेकर आत्मदर्शन किया जाता है। इस जड़ शरीर में चेतन तत्त्व आत्मा है। उसकी स्थिति से ही जीवन की पूरी प्रक्रिया चलती है। इस शरीररूपी दुर्ग का स्वामी वह सुसूक्ष्म और दुर्ज्ञेय तत्त्व आत्मा है। उस आत्मा के ज्ञान और दर्शन से मनुष्य तत्त्वदर्शी और त्रिकालज हो जाता है। उसकी प्राप्ति की समग्र प्रक्रिया इस महाकाव्य में वर्णित है। इस विज्ञान को ही ;आत्मविज्ञान; कहते हैं। जीवन में स्थायी सुख, शान्ति, आनन्द और विविध सिध्दियों की प्राप्ति के लिए आत्मविज्ञान; ही एकमात्र साधन है। इसका सतत अनुशीलन मानव को अपने लक्ष्य मोक्ष तक पहुँचाएगा। डा. द्विवेदी वेद और दर्शन शास्त्र के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान हैं। उन्होंने कठोर परिश्रम से इस अतिगूढ़ विषय को अतिसरल और रोचक विधि से संस्कृत महाकाव्य के रूप में प्रस्तुत किया है। आशा है अध्यात्मप्रेमी जन इसका रसास्वाद कर कृतकृत्य होंगे।