Sant Kabir Aur Bhagtahi Panth / संत कबीर और भगताही पंथ
Author
: Shukdeo Singh
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Adhyatmik (Spiritual & Religious) Literature
Publication Year
: 1998
ISBN
: 8171242340
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xvi + 160 Pages, 9 Plates, 1 Map, Append., Biblio., Size : Demy i.e. 21.5 x 14 Cm.
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श्री भगवान गोस्वामी ने अनेक स्थानों को पवित्र किया और उन स्थानों पर समय-समय पर मठ, आश्रम और टीले खड़े हुए लेकिन उन्होंने चेतन-विवेक या कबीर साहब के 'विज्ञान-योग की प्रतिष्ठïा 'चटिया' में ही प्राप्त की। यह स्थान उनसे जुड़ी साधना में वही महत्त्व रखता है जो भगवान बुद्ध की साधना स्थली 'बोध गया' का है। अश्वथ वृक्ष, ज्ञानकूप जैसे प्रतीक इसलिए 'चटिया' में ही स्थापित हुए। साधना से सम्बन्धित अभिचार, टोटम या लोक-विश्वासों में पीपल का वृक्ष ऐसे ही नहीं खड़ा हो जाता। करोड़ों लोगों के विश्वास, अनेक तरह की लोक-शक्तियाँ, स्वप्र, घटना-संकुल चमत्कार, कामना-फल, किसी स्थान को 'पीठ' 'चौरा' 'गादी' 'सिद्धासन' और 'सूफ' की महिमा देते हैं। किसी एक कारण से कोई वृक्ष, वृक्षपद या भूमि चमत्कारी नहीं हो जाती। अनायास कूप, पुष्कर, ताल-कटोरे, वापी कुण्ड, ताल तलैया, गहवर, गोठ, अभिचार-केन्द्र नहीं बनते। यों ही गुदड़ी, कम्बल, चोला झोला, छड़ी खास तरह की हस्त मुद्राएँ, अँगूठे और अनामिका का शीर्ष-मिलन प्रभावी नहीं होते। आर्शीवाद, शाप, झाड़-फूँक और मन्त्राक्षर, मंत्र-शब्द कठिन 'उपायोंÓ से अभिषिक्त होकर परिणामी बनते हैं। अत: यह ध्यान में रखने की बात है की 'चटिया' एक ऐतिहासिक स्थान मात्र नहीं है। सिद्ध-भूमि है और इसे इसी रुप में तमाम जन विश्वासों को एकत्र करते हुए पहचानने की आवश्यकता है। ऐतिहासिक तथ्यों की सहायता से जाति-महिमा से मण्डित स्थानों की व्याख्या न हो सकती है न मूल्यांकन हो सकता है। 'भगताही फिरका' के ग्याहर सौ छप्पन मठों में अधिकांश मठों मेंं से प्रचलित धारणाओं, प्राय: दो सौ से अधिक आचार्य महंथों से सन् उन्नीस सौ बयासी से लेकर उन्नीस सौ अन्ठानबे तक निरन्तर संवाद और सम्पर्क करते हुए मेरी यह धारणा स्थिर हुई कि'चटिया' प्रज्ञा-तीर्थ है, बोध-स्थान है और यहाँ से श्री भगवान गोस्वामी को 'अक्षर-तन्त्र' सिद्ध हुआ था। वे विभिन्न स्थानों पर घूमने के बाद अपने मूल गुरु-स्थान 'पिथौराबाद' जाते हैं और अपना प्रथम उपदेश और 'पंथ चक्र प्रवर्तन' वहीं करते हैं।
'पिथौराबाद' यद्यपि निम्बार्क सम्प्रदाय का स्थान है फिर भी उसे वे अपने 'पंथ-बोध' से पुन: जीवित करते हैं। 'पंथ-विद्या' का भी यही से विकास होता है। वे 'पिथौराबाद' में ही रहकर सबसे पहले अपने प्रथम शिष्य घनश्याम गोस्वामी को पंथ की दीक्षा देते हैं। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि 'पंथ' और 'धर्म' में अन्तर है। 'धर्म' की अनेक पोथियाँ होती हैं। अनेक शा होते हैं, उनके देवी, देवता, निजन्धर गीत-प्रगीत, कीर्तन-पूजन, आचार-विचार, स्नान-शौच के विधान होते हैं। इसे शास्त्रीय भाषा में 'पाखण्ड' कहते हैं और व्यवहारिक भाषा में 'ब्रह्मïाचार'। कोई भी 'धर्म' बिना 'पाखण्ड' या 'ब्रह्मïाचार' के खड़ा नहीं हो सकता लेकिन 'पंथ' बिल्कुल भिन्न वस्तु है। 'पंथ' मेंं एक गुरु या पैगम्बर, एक पुस्तक या ग्रंथ, एक मन्त्र और प्राय: सैनिक किस्म का अनुशासन तथा वेश होता है। 'भगताही पंथ' इस अर्थ में 'पंथ' है धर्म या धर्माचार नहीं। विषय-क्रम, अनुसंधान पद्धति, अपनी आप निबेर, भगताही पंथ : वृत्त, भगताही आचार्य परम्परा, १. पंथ प्रवर्तक भगवान गोस्वामी, २. महंथ घनश्याम गोस्वामी, ३. उद्धोरण गोस्वामी, ४. दवन गोस्वामी, ५. गुणाकर गोस्वामी, ६. गनेश गोसाईं, ७. कोकिल गोसाईं, ८. बनवारी गोसाईं, ९. भीषम गोसाईं, १०. भोपाल गोस्वामी, ११. रामप्रसाद गोसाईं, १२. तुला गोसाईं, १३. गोपाल गोस्वामी, १४. रामलगन गोसाईं, १५. महंथ रामखेलावन गोसाईं, १६. यदुवंशी गोसाईं, १७. आचार्य महंथ रामरूप गोसाईं, परिशिष्ट।