Santon Rah Duoa Ham Deetha / संतो राह दुओ हम दीठा (कबीर : संत और विचारक)
Author
: Bhagwandeo Pandey
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Adhyatmik (Spiritual & Religious) Literature
Publication Year
: 1999
ISBN
: 8171242448
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 148 Pages, Size : Demy i.e. 22 x 14.5 Cm.

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संत कबीर निर्गुण काव्यधारा के प्रवर्तक माने जाते हैं। निश्चित रूप से कबीर की वाणियों में आध्यात्मिक एकता और सांस्कृतिक एकता का पक्ष प्रबल है। संत कबीर, गुरुनानक और संत रैदास आचरण से परम् परावादी थे और विचार से, सिद्धान्त से बड़े ही उदार, विद्रोही और एकतावादी संत थे। इसीलिए तो संत कबीर ने मानवता विरोधी पाखण्डों का घोर विरोध किया है। कबीर मानवता को ही सर्वोपरि मानते थे। इसीलिए कबीर की उपासना पद्धति में किसी व्यक्ति का नाम नहीं आया है। कबीर साहब के जो राम हैं वे दाशरथि राम नहीं हैं, विष्णु के अवतार राम नहीं हैं। राम का उच्चारण कबीर साहब ने बहुत किया है। उनका राम ब्रह्मï का पर्याय है। वह कैसा राम है? सर्वव्यापी है, सर्वज्ञ है, अनन्त है, अखण्ड है, सब घट में व्याप्त है। उस पर्याय के भीतर बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ है। कबीर साहब का उद्देश्य था कि मानव-मानव एक है, मानव की संस्कृति एक है। आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता के सम्बन्ध में वह हिन्दू संस्कृति, मुसलमान संस्कृति, ईसाई, बौद्ध संस्कृति और सिख संस्कृति यह विधान टुकड़ों में, खण्डों में कटी हुई संस्कृति का पोषक है इसलिए यह सब खण्डित संस्कृति है। खण्डित का सवाल तब उठता है जब धाॢमक या राजनैतिक उन्माद आ जाता है। धर्म, जाति और सम् प्रदाय के नाम पर एकता खण्डित नहीं हो सकती। कबीर धाॢमक उन्माद के बड़े विरोधी थे। मनुष्य में जब तक मानवता का संस्कार नहीं होता तब तक सब संस्कार व्यर्थ है, निरर्थक है, हम अनेक होते हुए भी एक हैं। एकता की भावना हममें होनी चाहिए। इसी मायने में संत कबीर सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता के पक्षधर थे।