Rason Ki Sankhya / रसों की संख्या

Author
: V. Raghavan
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2025, 2nd Edition
ISBN
: 9788171245185
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xvi + 192 Pages, Append., Biblio., Size : Demy i.e. 22 x 14 Cm.
MRP ₹ 250
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रसों की संख्या - प्रो. वी. राघवन्
हिन्दी रूपान्तर -अभिराज डा. राजेन्द्र मिश्र
तमिलनाडु राज्य के तञ्जौर जनपद में तिरुवानूर नामक अग्रहार में 22 अगस्त 1908 को जनमे, प्रो० वी० राघवन् ने मद्रास विश्वविद्यालय से एम०ए० परीक्षा, पाँच स्वर्णपदको के साथ उत्तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय के संस्कृत-विभाग में अनेक पदों पर कार्य करते हुए सेवानिवृत्ति के अनन्तर भी प्रो० राघवन् केन्द्रीय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू प्रतिष्ठापीठ (फेलोशिप) पर आसीन रहे। अनेक वर्षों तक साहित्य अकादमी की संस्कृत-पत्रिका संस्कृत प्रतिभा के यशस्वी सम्पादक भी रहे।
प्रो० वेङ्कïटराघवन् स्वातन्त्र्योत्तर संस्कृत रचनाधर्मिता एवं संस्कृत-प्रतिष्ठापना के प्रकाशस्तम्भ माने जाते हैं। एक लोकप्रिय गहन अध्येता प्राध्यापक, प्रतिभावदात रंगकर्मी, सहृदय कवि, तत्त्वाभिनिवेशी समीक्षक, अनुभूति-प्रवण महामानव, युगसंवेदना के प्रत्यभिज्ञाता तथा देश-विदेश के यात्रानुभवों से सम्पन्न प्रो० राघवन् अर्वाचीन संस्कृत कविता में एक विशिष्ट युग (1940-1980) के प्रतिमान माने जाते हैं। उनका कर्तृत्व विपुल एवं बहुमुखी रहा है।
‘दि नम्बर ऑव रसाज़’ नामक काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ प्रो० राघवन् की शास्त्र-वैदुषी का निकष माना जाता है। इस ग्रन्थ में प्रो० राघवन् की प्रतिष्ठा से जुड़े पक्ष-विपक्षात्म· विद्वद्विवादों की सांगोपांग समीक्षा तो की ही है, रसों की संख्या पर भी गहन दृष्टि डालते हुए उन्होंने भोज एवं हरिपालादि-अभिमत नये रसों की भी सांगोपांग समीक्षा की है। यह ग्रन्थ नूतन व्यभिचारी भावों की शास्त्रनिष्ठता पर भी गम्भीर मन्तव्य प्रस्तुत करता है। इतना ही नहीं, समीक्षा के अनेक अभिनव वातायन भी खुलते दीखते हैं, इस ग्रन्थ के अनुशीलन से।
काव्यशास्त्रीय उदग्र चिन्तन एवं तत्त्वपरक समीक्षा की दृष्टि से यह ग्रन्थ प्रो० वेङ्कïटराघवन् का यशोविग्रह प्रतीत होता है।
प्रो० वेङ्कïटराघवन् स्वातन्त्र्योत्तर संस्कृत रचनाधर्मिता एवं संस्कृत-प्रतिष्ठापना के प्रकाशस्तम्भ माने जाते हैं। एक लोकप्रिय गहन अध्येता प्राध्यापक, प्रतिभावदात रंगकर्मी, सहृदय कवि, तत्त्वाभिनिवेशी समीक्षक, अनुभूति-प्रवण महामानव, युगसंवेदना के प्रत्यभिज्ञाता तथा देश-विदेश के यात्रानुभवों से सम्पन्न प्रो० राघवन् अर्वाचीन संस्कृत कविता में एक विशिष्ट युग (1940-1980) के प्रतिमान माने जाते हैं। उनका कर्तृत्व विपुल एवं बहुमुखी रहा है।
‘दि नम्बर ऑव रसाज़’ नामक काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ प्रो० राघवन् की शास्त्र-वैदुषी का निकष माना जाता है। इस ग्रन्थ में प्रो० राघवन् की प्रतिष्ठा से जुड़े पक्ष-विपक्षात्म· विद्वद्विवादों की सांगोपांग समीक्षा तो की ही है, रसों की संख्या पर भी गहन दृष्टि डालते हुए उन्होंने भोज एवं हरिपालादि-अभिमत नये रसों की भी सांगोपांग समीक्षा की है। यह ग्रन्थ नूतन व्यभिचारी भावों की शास्त्रनिष्ठता पर भी गम्भीर मन्तव्य प्रस्तुत करता है। इतना ही नहीं, समीक्षा के अनेक अभिनव वातायन भी खुलते दीखते हैं, इस ग्रन्थ के अनुशीलन से।
काव्यशास्त्रीय उदग्र चिन्तन एवं तत्त्वपरक समीक्षा की दृष्टि से यह ग्रन्थ प्रो० वेङ्कïटराघवन् का यशोविग्रह प्रतीत होता है।