Kashi Ki Panditya Parampara (1200 A.D. - 1980 A.D.) / काशी की पाण्डित्य-परम्परा [१२०० ई.-१९८० ई.]
Author
: Baldev Upadhyaya
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Bio/Auto-Biographies - Spiritual Personalities
Publication Year
: 2016, 3rd Edition
ISBN
: 9789351461555
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xxxvi + 1124 Pages, Index, Append., Biblio., Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.
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काशी की पाण्डित्य परम्परा
(A Comprehensive Historical account of the Sanskrit Pandits of Varanasi with their biography and works, literary attainments and reminiscences) यह ग्रन्थ साढ़े सात सौ वर्षों की काशी की पाण्डित्य परम्परा का परिचायक विवरण प्रस्तुत करता है। मध्य युग (1200 ई०-1750 ई०) तथा अर्वाचीन युग (1750 ई०-1950 ई०) में काशी में अध्ययन-अध्यापन करने वाले संस्कृत विद्वानों के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का अनुसन्धानमूलक परिचय तथा उनके ग्रन्थों का समालोचन पहली बार यहाँ दिया जा रहा है। इसमें शताधिक विशुद्ध पण्डितों का, विद्वान, संन्यासियों का तथा अंग्रेजी ज्ञाता संस्कृतज्ञों का एकत्र समवेत विवरण तथा विमर्शण इत: पूर्व कहीं भी उपलब्ध नहीं है। इन पण्डितों के शास्त्रीय वैदुष्य तथा व्यावहारिक चमत्कार-विषयक दिव्य संस्मरण नितान्त रोचक एवं विशद रूपेण ज्ञानवर्द्धक हैं। व्याकरण, अलंकारशास्त्र, न्याय, वेद-वेदान्त, पुराण, आयुर्वेद एवं तन्त्र आदि नाना शास्त्रीय परम्पराओं को अग्रसर करने वाले, अलौकिक प्रतिभा तथा पाण्डित्य से विभूषित विद्वानों के वृत्त आधुनिक कहानियों से भी अधिक आकर्षक बन पड़े हैं। शैली विमर्शात्मक तथा भाषा रोचक है। काशी की पाण्डित्य परम्परा के लगभग आठ सौ वर्षों का यह प्रामाणिक इतिहास संस्कृत प्रेमियों, जिज्ञासुओं तथा शोधकर्ताओं के लिए एक अमूल्य निधि सिद्ध होगा। इन विद्वानों के एवं सम्बद्ध संस्कृत संस्थाओं के चित्र इसके अन्यतम अनुपम आकर्षण हैं। लेखक - पद्मभूषण आचार्य पं. बलदेव उपाध्याय" जन्म : 10 अक्टूबर, 1899 ई." निधन : 10 अगस्त, 1999 ई." स्थान : सोनबरसा, जिला बलिया (उत्तर प्रदेश) आरम्भिक शिक्षा गवर्नमेण्ट हाईस्कूल, बलिया से प्राप्त कर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी से एम.ए. प्रथम श्रेणी (प्रथम) में 1922 ई. में उत्तीर्ण किया। साहित्याचार्य की उपाधि संस्कृत कालेज, वाराणसी से प्राप्त की। 1922 ई. से लेकर 1960 ई. तक लगातार 38 वर्षों तक हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में व्याख्याता, रीडर तथा अध्यक्ष पद को सुशोभित करते हुए अध्यापन कार्य किया। सेवा-निर्मुक्त होने पर दो वर्षों तक वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के अन्तर्गत पुराणेतिहास विभाग के अध्यक्ष पद का कार्य संभाला। 1968 ई. वहीं अनुसंधान संचालक के पद पर तीन वर्षों तक कार्य करने के उपरान्त सेवाकार्य से निर्मुक्त हुए। 07 अगस्त 1993 से 04 सितम्बर 1996 तक आपने संस्कृत अकादमी, लखनऊ, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। गन्थ : भारतीय दर्शन, भारतीय धर्म और दर्शन, बौद्ध दर्शन मीमांसा, वैष्णव सम्प्रदायों का साहित्य तथा सिद्धान्त, भारतीय वाङ्मय में श्रीराधा, संस्कृत-वाङ्मय का बृहद इतिहास, संस्कृत-शास्त्रों का इतिहास आदि ग्रन्थों का हिन्दी में प्रणयन किया। प्राकृतप्रकाश, भामह-काव्यालंकार, नाट्यशास्त्र आदि संस्कृत ग्रन्थों का विमर्शात्मक संस्करण प्रकाशित किया। इन ग्रन्थों में से अनेक विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तथा कन्नड़, तेलूगु आदि भाषाओं में अनूदित हैं। पुरस्कार : मंगलाप्रसाद पुरस्कार, डालमिया पुरस्कार, हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार, श्रवणनाथ पुरस्कार, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदत्त अनेक पुरस्कार। मानद उपाधियाँ : साहित्य वारिधि-हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, 1962 ई.। वाचस्पति संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, 1977 ई.। सर्टिफिकेट आफ आनर-राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, 1968 ई.। कालिदास साहित्य रत्न-कालिदास अकादमी उज्जेन, 1982 ई.। पद्मभूषण 1993 ई.।