Krishna Ka Jeevan Sangeet (A Commentary of Bhagavadgita) / कृष्ण का जीवन संगीत (श्रीमद्भगवद्गीता : एक अध्ययन)
Author
: Bhanu Shankar Mehta
  Gunwant Shah
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Gita, Bhagwat
Publication Year
: 1997
ISBN
: 9VPKKJSH
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xxiv + 408 Pages, 4 Plates, Size : Demy i.e. 22.5 x 14 Cm.

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'गीताÓ भारतीय वाङ्गïमय का अमर ग्रन्थ है और संसार की सभी भाषाओं में इस पर अनेक व्याख्यायें प्रकाशित हो चुकी हैं। एक अवधारणा है कि गीता वृद्ध लोगों के लिए, धर्माचरण करने वालों या मरणासन्न व्यक्ति की आत्मा की शान्ति हेतु पढऩे का ग्रन्थ है। डॉ० गुणवन्त शाह ने इस धारणा को नकारते हुए, कर्म पथ पर अग्रसर नये युवकों के लिए गीता की व्याख्या की है। एकदम सामान्य व्यक्ति के लिए इस असामान्य दुरूह ग्रन्थ की सरल, सुबोध भाषा में व्याख्या करके डॉ० शाह ने अभूतपूर्व कार्य किया है। जैसा सर्वविदित है कि हमारी नयी पीढ़ी 'बाबावाक्यम्Ó या उपदेश ग्रहण करने की मन:स्थिति में नहीं है, क्योंकि वह तर्क संगत समाधान चाहती है। डॉ० गुणवन्त शाह ने संसार के सैकड़ों दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, विचारकों के वचनों और तर्कों द्वारा गीता का सन्देश समझाने का महत् प्रयास किया है। इस दृष्टि से पुस्तक अद्भुत है। यो योग-साधना करना चाहते हैं, अध्यात्म-पथ पर आगे बढऩा चाहते हैं उनके लिए तो यह पुस्तक 'गाइडÓ का काम करेगी, अंगुली पकड़कर अध्यात्म के दुरूह मार्ग पर, सावधानी के साथ आगे ले जायेगी। डॉ० शाह ने गीता के अनेक कथनों के नये और आधुनिक अर्थ दिये हैं और उन्होंने इस मार्ग पर बहकाने वाले, गलत तरीकों और भ्रमपूर्ण निदेशों के प्रति सावधान भी किया है। उनका यह कार्य आज के भगवानों के युग में नितांत आवश्यक भी है। समूची पुस्तक विश्वशान्ति का स्तवन है, निर्मल प्रकृति की आराधना है। साथ ही डॉ० शाह सहज रूप से ललित भाषा शैली के आचार्य हैं, सुभाषितों की वर्षा करने में पटु हैं, अस्तु पुस्तक की रोचकता शायद उपन्यास या कहानी से बढ़कर है। शायद यही कारण है कि गुजराती में इसके दो संस्करण हाथोंहाथ बिक गये। ज्ञान का ऐसा यज्ञ अन्यत्र दुर्लभ है। डॉ० गुणवन्त शाह गीता का परिचय देते हुए कहते हैं : 'महाभारतÓ के उद्यान में अ_ïारह शाखाओं में फैला अत्यन्त रमणीय और घटादार महाद्रुम.........Ó डॉ० शाह ने गीता को कृष्ण का जीवन संगीत कहा है क्योंकि वे विज्ञानी कार्ल पिब्राम से सहमत हैं कि 'आदमी मूलत: तर्कयुक्त नहीं है बल्कि संगीतमय प्राणी है। संगीत में तर्क समा जाता है जबकि तर्क में आत्मलक्षिता और वस्तु लक्षिता के बीच तकरार चलती रहती है।Ó डॉ० शाह ने परम सत्ता का शाश्वत सुमधुर दिव्य गान प्रस्तुत करके हमारी चेतना में आनन्द भरने का सत्प्रयास किया है जो आज के विषाद-युग में अमृत-औषधि सिद्ध होगा। गुजराती भाषा से ग्रन्थ का अनुवाद डॉ० भानुशंकर मेहता ने किया है जो पहले भी डॉ० शाह के ग्रन्थों के अनुवाद की विशेषता है मूल-का-सा आनन्द और मूल की सुगन्ध।