Madhyayugin Kavya Alochana Drishti / मध्ययुगीन काव्य आलोचना दृष्टि
Author
: Ramashraya Singh
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2020, First Edition
ISBN
: 9789387643437
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 96 Pages, Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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मध्ययुगीन काव्य : आलोचना दृष्टि
लेखक : डा. रामाश्रय सिंह
कबीर के समय जो जीवन की बेचैनियाँ थीं, क्या आज नहीं हैं? हैं तो कैसे इनका इलाज सम्भव है?  इसी तरह जायसी की पद्मावत को भी रेखांकित किया गया है। रैदास की कविता में आन्तरिक अभिव्यक्ति क्या थी? सच में अन्दर ही सुन्दर है, बाहर कुछ भी नहीं है, केवल दिखावा है। मीरा के लिए क्या कहना है, जहाँ ‘सुन्दरी से अच्छी सूली’ की या ‘सूली ऊपर सेज हमारी’ बात प्रमाणित होती है, यह मुहावरा बन गया है। मीरा इतिहास के पन्नों में अमर हो जाती हैं। सूरदासजी के वात्सल्य-वर्णन का क्या कहना।  इन्होंने बाल-मन का कौन-सा कोना छोड़ा है, कृष्ण का बाल-मन लोक-मन बन जाता है। लोक का शाब्दिक अर्थ है जगत्, प्रकृति, ईश्वर इसमें जो अच्छा लगे इसे मान कर देखने पर भाव निकलेगा।  छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में तुलसीदास के ‘मानस-मसान’ शीर्षक का चयन किया गया है।  इसी तरह बिहारी के दोहों में गागर से सागर भरने की बात बहुत पहले से सुनते आ रहे हैं, उसके सूत्र बिहारी ने दिए जो पियूषवर्षी मेघ की तरह हैं। बिहारी के यहाँ गागर में सागर था, तो घनानन्द के यहाँ सागर शरमा के गगरी हो जाता है। इसी क्रम में पुस्तक में ‘राष्ट्रीयता के पहनावे में भूषण’ को रखा गया है। भूषण को जातीयता का कवि लोग मानते हैं। ऐसा नहीं है। उनकी जातीयता राष्ट्रीयता की थी। पर्यावरण को ध्यान में रखकर पुस्तक में इस अध्याय को रखा गया है क्योंकि प्रदूषण का धुँआ मौत का कुँआ बनता जा रहा है। साथ ही विमर्श को भी स्थान देने का प्रयास किया गया है। आज जहाँ दलित बोल रहा, स्त्री सिर पर नाच रही है, अछूता आदिवासी समाज से कट रहा है, विस्थापन की स्थिति झेल रहा है, ज्वलन्त सवाल हैं। अन्त में व्यावहारिक हिन्दी के अन्तर्गत अनुवाद की चुनौतियाँ और सम्भावनाओं व अन्य को भी जोड़ा है। आज के समय में मानवीयता, प्रेम, मित्रता,सद्भाव की अकूत कमी की पूर्ति का भी प्रयास है यह कृति।