Bhojapuri Hridayesh Satsai / भोजपुरी हृदयेश सतसई
					
					
					Author
						: Shrikrishna Rai 'Hridayesh'
						Language
						: Hindi
						Book Type
						: General Book
						Category
						: Hindi Poetical Works / Ghazal etc.
						
						Publication Year
						: 2004
						ISBN
						: 8171243932
						Binding Type
						: Hard Bound
						Bibliography
						: xvi + 60 Pages, Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.
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हृदयेश की 'भोजपुरी सतसई' भोजपुरी में रचित प्रथम सतसई है। 700 दोहों से युक्त सतसई के प्रत्येक दोहे में भाव एवं चिन्तन की व्यंजना है। कहीं-कहीं ग्राम एवं नगर जीवन की विसंगतियों अथवा समकालीन समाज के अन्तॢवरोधों पर व्यंग्य है। इनमें भोजपुरी की मिट्टïी की महक है, लोक जीवन की गमक और सुवास है—महकत माटी गाँव कऽ, परलि सहर के बीच। ए पछिवाँ! तू गन्ध के, ले अइत फिन खींच॥ मन्दिर मस्जिद ईंट कऽ गिरल उठल बा काम। मानुस तन जब गिर परल, का रहीम का राम। नाबर हिन्दी में रहल, ना हमार खरिहान। भोजपुरी में मन भइल, बो के देखीं धान॥ हृदयेशजी की सतसई, ये मुक्तक, ये दोहे दो पंक्तियों में बहुत कुछ कह जाते हैं, जिनकी गूँज मन में बस जाती है।—पुरुषोत्तमदास मोदी
साहित्य तथागत पं० श्रीकृष्ण राय हृदयेश छायावादोत्तर काल के प्रतिनिधि कवि हैं। हृदयेशजी गुरुभक्त ङ्क्षसह भक्त, पं० श्यामनारायण पाण्डे, दिनकर, बच्चन के कालखण्ड के कवि हैं। इनके काव्य में गत्यात्मकता है, ठहराव नहीं। इनका साहित्य किसी वाद से ग्रसित नहीं है। हृदयेशजी मूलत: चिन्तन एवं भाव प्रधान कवि हैं। हृदयेशजी के चिन्तन में मूल्यों के प्रति समर्पण है, स्थानीय रंग है, जीवन की उमंग है, अतीत का गौरव है, वर्तमान के लिए सन्देश है। उनके साहित्य में शिल्पगत वैविध्य है। उन्होंने जिस भी विधा को स्पर्श किया उसे नया आयाम दिया। महाकाव्य, खण्डकाव्य, गजल, दोहे, गीतिका, व्यंग्य की फुहारें, इतिहास ग्रन्थ, समीक्षा, कहानी, आत्मकथा, जीवनी, डायरी, संस्मरण लेखक के साथ ही हृदयेश जी कुशल प्रकाशक एवं स?पादक रहे। मानवता को इन्होंने रचनाओं में ही व्यक्त नहीं किया बल्कि जीवन में भी जिया। हृदयेशजी साहित्य सर्जक के साथ ही साहित्यकार सर्जक रहे। राष्टï्रभाषा हिन्दी के उन्नायक होने के साथ ही अन्य भाषा एवं बोलियों के प्रति समान आदर एवं स?मान करते थे। भोजपुरी सतसई के दोहे इसका ज्वलन्त प्रमाण है। हृदयेश सतसई खड़ी बोली के सिद्धहस्त काव्य स्रष्टïा की प्रथम भोजपुरी काव्यकृति होने पर भी प्रौढ़ता की चोटियों को छूती दृष्टिïगोचर होती है। इस कृति में कवि ने समकालीन समाज के अन्तॢवरोधों को प्रसाद गुण सम्पन्न भाषा में बहते नीर की तरह प्रवाहित किया है। इसमें भोजपुरी माटी की सोंधी सुगन्ध, चौपाल का बतरस, माँ के ममत्त्व का मणिकांचन योग है। हृदयेशजी की सतसई भोजपुरी भाषा के यश-गौरव की श्रीवृद्धि करने के साथ ही भोजपुरी भाषा का शृंगार करेगी। —डॉ० ऋचा राय, संचालिका, हृदयेश पुरस्कार संस्थान