Aalokpunj Swami Swatantranand / आलोकपुंज स्वामी स्वतंत्रानन्द
Author
: Kanhaiya Singh
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Bio/Auto-Biographies - Spiritual Personalities
Publication Year
: 2001
ISBN
: 9AGASSP
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: viii + 144 Pages, Size : Demy i.e. 21.5 x 13.5 Cm.

MRP ₹ 100

Discount 10%

Offer Price ₹ 90

शास्त्र प्रतिपादित सत्य के व्याख्याता तो बहुत हैं पर इस सत्य को जीवन में उतार कर स्वयं ही आलोकपुंज, चरमसत्य और अमर बनकर जीवन जीने वाले महापुरुष कम ही मिलते हैं। प्राचीन कथाओं में जनक-शुकादि जैसे जीवन्मुक्त, परमविरक्त, तत्त्वदर्शी, महात्माओं का उल्लेख तो मिलता है, पर आज के भौतिकवादी युग में ऐसे महात्माओं का प्रत्यक्ष दर्शन कठिन ही है। परम पूज्य स्वामी स्वतंत्रानन्दजी प्राचीन ऋषि-परम्परा में वॢणत जीवन्मुक्त महात्माओं की श्रेणी के एक महान् संत थे। वे स्वयं आलोकपुंज थे और वे आलोक पथ पर विचरण करते रहते थे। वे समस्त शास्त्रों के निष्णात् अध्येता थे। उनमें व्याख्या-विश्लेषण की अद्भुत शक्ति थी। धारा-प्रवाह प्रवचन में लगता था कि कोई ईश्वरीय शक्ति उनके भीतर से प्रस्फुरित होकर शब्द के रूप में अपने अलौकिक अजस्र प्रवाह से श्रोता-मण्डल को ब्रह्मïानन्द में तिरोहित कर रही है। इन सबसे बड़ी बात यह थी कि स्वामीजी में सांसारिक राग-द्वेष, संग्रह-परिग्रह, आत्म पर का रंचमात्र भी स्पर्श नहीं था। स्वामी जी महाराज के लौकिक जीवन के सामान्य परिचय के साथ उनकी जीवन-लीला के अनेक लोकोत्तर प्रसंगों को इस पुस्तक में एकत्र करने का प्रयास किया गया है। साथ ही उनका सत्संग जिन संतो-महात्माओं एवं विद्वानों से हुआ है, उसकी भी यथासंभव झाँकी प्रस्तुत की गयी है। कुछ अति निकट के भक्तों ने उनके सम्बन्ध अपने अनुभवों को संस्मरणबद्ध किया है जिनसे महाराजश्री की विभूतियों का कुछ दर्शन होता है। आधुनिक युग के एक विरल संत की यह झाँकी भौतिकता से आक्रान्त मानव के लिए पाथेय बनेगी। विषय-सूची : 1. जीवन-लीला, 2. पावन स्पर्श : पारस स्पर्श, 3. संत समागम : प्रेरक प्रसंग, 4. ब्राह्मïी स्थिति की भावसम्पदा, 5. सम्मति एवं संस्मरण ((क) अमंदमामोदभरम्, (ख) स्वरत: सार्थक स्वतंत्रानन्द, (ग) त्रिवेणी संगम - स्वामी जी, (घ) निकट से दर्शन, (ङ) मैं कहता आँखों की देखी, (च) करुणा-वरुणालय, (छ)सम्पर्क के कुछ क्षण, (ज) श्री गुरु चरण में, (झ) संसार महार्णव सेतु)।