Kashi Mein Mokshakami Pravasi Vidhavayen / काशी में मोक्षकामी प्रवासी विधवाएँ (धाॢमक सामाजिक जीवन)

Author
: Satya Prakash Mittal
Ramlakhan Maurya
Baidyanath Saraswati
Ramlakhan Maurya
Baidyanath Saraswati
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Sociology, Religion & Philosophy
Publication Year
: 2005
ISBN
: 8171244092
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xxii + 156 Pagse, Append., Size : Demy i.e. 22 x 14.5 Cm.
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(Dharmik Samajik Jivan)
विश्व एक, प्रकृति भिन्न। जीव-मण्डल एक, मनुष्य विशिष्टï। मनुष्य एक, स्त्री-पुरुष भिन्न। संस्कृति एक, विधि-निषेध भिन्न। स्वधर्म पालन कत्र्तव्य : 'धर्मो रक्षति रक्षित:Ó। भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी का सातत्य ज्ञान प्रतिष्ठिïत है। पति के निधन पर पत्नी में वैराग्य की भावना आती है। तपस्विनी की तरह जीना अपना धर्म समझती है। ऐसा क्यों? प्रामाण्य स्वत: एवं अप्रामाण्य परत: होता है। वृद्ध पुरुषों एवं विधवाओं के लिए तीर्थों में शेष जीवन व्यीतत करना धार्मिक कत्र्तव्य है। शिव जगत का उपादान कारण है, अत: काशीवास करना आदर्श जीवनचरित है। भारत के प्राय: सभी प्रान्तों से वृद्ध एवं विधवाएँ अपना शेष जीवन व्यतीत करने के लिए शिव के तेज (काशी) में लीन होने की कामना रखते हैं। कालिकाल की काशी में जीवन व्यतीत करना सहज नहीं है। दुर्भाग्य है कि विधवाओं के प्रति आधुनिक लोगों में श्रद्धा नहीं है। फिर भी आस्था की रक्षा होती है। क्यों? और कैसे? इसके लिए देखें इस पुस्तक के तीन अध्याय जो ऐतिहासिक एवं सामाजिक समीक्षा की भूमिका है। अध्याय चार काशी की डायरी संवेदना से प्रस्फुटित है। लगभग 175 पृष्ठïों का यह ग्रन्थ अपने आपमें स्र्वांगपूर्ण है।
विश्व एक, प्रकृति भिन्न। जीव-मण्डल एक, मनुष्य विशिष्टï। मनुष्य एक, स्त्री-पुरुष भिन्न। संस्कृति एक, विधि-निषेध भिन्न। स्वधर्म पालन कत्र्तव्य : 'धर्मो रक्षति रक्षित:Ó। भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी का सातत्य ज्ञान प्रतिष्ठिïत है। पति के निधन पर पत्नी में वैराग्य की भावना आती है। तपस्विनी की तरह जीना अपना धर्म समझती है। ऐसा क्यों? प्रामाण्य स्वत: एवं अप्रामाण्य परत: होता है। वृद्ध पुरुषों एवं विधवाओं के लिए तीर्थों में शेष जीवन व्यीतत करना धार्मिक कत्र्तव्य है। शिव जगत का उपादान कारण है, अत: काशीवास करना आदर्श जीवनचरित है। भारत के प्राय: सभी प्रान्तों से वृद्ध एवं विधवाएँ अपना शेष जीवन व्यतीत करने के लिए शिव के तेज (काशी) में लीन होने की कामना रखते हैं। कालिकाल की काशी में जीवन व्यतीत करना सहज नहीं है। दुर्भाग्य है कि विधवाओं के प्रति आधुनिक लोगों में श्रद्धा नहीं है। फिर भी आस्था की रक्षा होती है। क्यों? और कैसे? इसके लिए देखें इस पुस्तक के तीन अध्याय जो ऐतिहासिक एवं सामाजिक समीक्षा की भूमिका है। अध्याय चार काशी की डायरी संवेदना से प्रस्फुटित है। लगभग 175 पृष्ठïों का यह ग्रन्थ अपने आपमें स्र्वांगपूर्ण है।